जिनका मन मनोग्रंथियों से घिरा होता है वे लोग दुनिया को स्वयं से अधिक महत्व देते हैं l दुनिया के लोगों द्वारा कही हुई बातें इनके अंतर्मन में बस जाती हैं और इससे इनके मन में हीनता की ग्रंथि पनपती है , ऐसे व्यक्ति बेचैन , अशांत व परेशान रहते हैं l
लेकिन जिनका मन मनोग्रंथियों से मुक्त होता है वे स्वयं से प्यार करते हैं l अपनी कमियों को स्वीकारते हैं , उन्हें छिपाते नहीं हैं , उन्हें सुधारने की कोशिश करते हैं और अपना आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए पूरी मेहनत और लगन से काम करते हैं l
महान ज्ञानी अष्टावक्र जी का शरीर आठ जगह से टेड़ा था , लोग इन्हें चिढ़ाते , इनका मजाक उड़ाते , लेकिन वे उन पर कभी ध्यान नहीं देते थे l एक बार वे राजा जनक के दरबार में विद्वानों की सभा में आमंत्रित किये गए , गंभीर विषय पर चर्चा होनी थी l जैसे ही अष्टावक्र ने प्रवेश किया , उनके टेड़े - मेढे शरीर और अजब सी चाल देखकर सभी उपस्थित ज्ञानीजन ठहाके लगाकर हंस पड़े l इस पर भी अष्टावक्र न तो क्रोधित हुए और न ही स्वयं को अपमानित महसूस किया l बस इतना ही बोले ---- " राजन ! मैंने तो सोच था कि मैं विद्वानों की सभा में आया हूँ लेकिन यहाँ तो सब चर्मकार बैठे हैं l " मनोग्रंथियों से रहित व्यक्ति , कैसी भी परिस्थिति से घिरे हों कभी भी अपने मन में हीनता का भाव नहीं आने देते l स्वयं से प्रेम करते हैं l
लेकिन जिनका मन मनोग्रंथियों से मुक्त होता है वे स्वयं से प्यार करते हैं l अपनी कमियों को स्वीकारते हैं , उन्हें छिपाते नहीं हैं , उन्हें सुधारने की कोशिश करते हैं और अपना आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए पूरी मेहनत और लगन से काम करते हैं l
महान ज्ञानी अष्टावक्र जी का शरीर आठ जगह से टेड़ा था , लोग इन्हें चिढ़ाते , इनका मजाक उड़ाते , लेकिन वे उन पर कभी ध्यान नहीं देते थे l एक बार वे राजा जनक के दरबार में विद्वानों की सभा में आमंत्रित किये गए , गंभीर विषय पर चर्चा होनी थी l जैसे ही अष्टावक्र ने प्रवेश किया , उनके टेड़े - मेढे शरीर और अजब सी चाल देखकर सभी उपस्थित ज्ञानीजन ठहाके लगाकर हंस पड़े l इस पर भी अष्टावक्र न तो क्रोधित हुए और न ही स्वयं को अपमानित महसूस किया l बस इतना ही बोले ---- " राजन ! मैंने तो सोच था कि मैं विद्वानों की सभा में आया हूँ लेकिन यहाँ तो सब चर्मकार बैठे हैं l " मनोग्रंथियों से रहित व्यक्ति , कैसी भी परिस्थिति से घिरे हों कभी भी अपने मन में हीनता का भाव नहीं आने देते l स्वयं से प्रेम करते हैं l
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