पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं ---- ' हम में ' न ' कहने की हिम्मत होनी चाहिए l गलत का समर्थन नहीं करेंगे , उसमें सहयोग नहीं देंगे l ' लोभ - लालच , कामनाएँ , तृष्णा , अनुचित महत्वाकांक्षा ऐसी कमजोरियाँ हैं जिसने मनुष्य में साहस के गुण को समाप्त कर दिया है l लोगों पास करोड़ों , अरबों की संपदा होती है , फिर भी वे स्वाभिमान से नहीं जीते , कठपुतली बन कर रहते हैं l आचार्य श्री कहते हैं --- साहस और स्वाभिमान से जीने लिए हमारा पथ सच्चाई का होना चाहिए l --------- एक राक्षस था l उसने एक आदमी को पकड़ा l उसने उसको खाया नहीं , डराया भर और बोला ------- ' मेरी मर्जी के काम में निरंतर लगा रह , मेरे कहे अनुसार चल , यदि ढील की तो खा जाऊँगा l ' वह आदमी जब तक बस चला , तब तक काम करता रहा l जब थक कर चूर - चूर हो गया और काम सामर्थ्य से बाहर हो गया तो उसने सोचा कि तिल - तिलकर मरने से तो एक दिन पूरी तरह मरना अच्छा है l उसने राक्षस से कह दिया ----- " जो मरजी हो सो करे , इस तरह मैं नहीं करते रह सकता l " राक्षस ने सोचा काम का आदमी है l थोड़ा - थोड़ा काम बहुत दिन तक करता रहे तो क्या बुरा है ? एक दिन खा जाने पर तो उस लाभ से हाथ धोना पड़ेगा , जो उसके द्वारा मिलता रहता है l राक्षस ने समझौता कर लिया और खाया नहीं , थोड़ा - थोड़ा काम करते रहने की बात मान ली l ' चाहे कैसी भी परिस्थिति आएं , जूझने का साहस होना चाहिए l
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