30 April 2024

WISDOM ------

   संसार  में  अनेक  प्राणी  हैं , पशु -पक्षी , जीव -जंतु  आदि  हैं   लेकिन  केवल  मनुष्य  को  ही  यह  विशेष  सुविधा  प्राप्त  है  कि   वह  अपनी  गलतियों  को  सुधार  कर , अपनी  दुष्प्रवृत्तियों   पर  नियंत्रण  कर  नर  से  नारायण  की  यात्रा  पूर्ण  कर  सकता  l  नर  से  नारायण  बनने  की  यह  यात्रा  बहुत  कठिन  है  l  बाहरी  बाधाएं  तो  हैं  लेकिन  सबसे  बड़ा  महाभारत  तो  अपने  अंदर  ही  चलता  है  , लोभ , लालच , तृष्णा , कामना , वासना , अहंकार ,  ईर्ष्या , द्वेष  , क्रोध  ---- समय -समय  पर  भीतर  से     फुफकारती  हैं  और  मनुष्य  को   अध्यात्म  पथ  पर  आगे  नहीं  बढ़ने  देतीं  l   ये  सब  दुर्गुण  ऐसे  हैं  जिन  पर  नियंत्रण  करना , इन  पर  विजय  पाना  बहुत  कठिन  है  केवल  एक  ही  रास्ता  है  ,  ईश्वर  की  शरण  में  जा  कर   ही    नर  से    नारायण  बनने  की  राह  आसान  हो   जाती  है  l   बड़े -बड़े  ऋषि , योगी  भी  क्रोध  व  अहंकार  से  नहीं  बचे  हैं  l    ------ कहोड़  एक  ऋषि  थे ,  बहुत  ज्ञान  था  उन्हें  l  लेकिन  अपने  क्रोध  और  अहंकार  पर  नियंत्रण  नहीं  था  l  जितना  ज्ञान  उन्हें  था  ,  उससे  कहीं  ज्यादा   और  अद्भुत  ज्ञान  उनके  बालक  को  था  जो  अभी  अपनी  माँ  के  गर्भ  में  था  l  ज्ञान  की  चर्चा  में  गर्भस्थ  शिशु  ने   अपने  पिता  से  कहा ---- " आप  समझते  हैं  कि  शास्त्र  को  पढ़कर  ज्ञान  प्राप्त  कर  लेंगे  ,  लेकिन  यह  आपका  वहम  है  l  ज्ञान  तो  स्वयं  के  अंदर  है  l  जब  तक  अन्दर  को  न  उघाड़ा  जाये  , ज्ञान  प्रकट  नहीं  होता  l '  गर्भस्थ  शिशु  की  यह  बात  सुनकर  ऋषि   का  अहंकार  चोटिल  हुआ  , उन्हें  बहुत  क्रोध  आया  l उन्होंने  कहा ---  " रे  अजन्मे  बालक  !  तेरा  इतना  दुस्साहस  कि  तू    संसार  और  संसार  से  परे  का   ज्ञान   रखने  वाले    अपने    पिता  को  ज्ञान  दे  रहा  है  l   तुम्हे  अपनी  मर्यादा  का  ध्यान  नहीं  है  , इस  दुस्साहस  के  लिए  मैं  तुम्हे  अवश्य   दण्डित  करूँगा  l "  अपने  पति  का  क्रोध  देखकर  ऋषि  पत्नी  सहम  गईं  और  शिशु  की  ओर  से  क्षमा  मांगने  लगीं  और  बेहोश  हो  गईं  l  शिशु  माँ  के  गर्भ  में  शांत  और  स्थिर  था  l  माता  के  होश  में  आने  पर  वह  अपने  पिता  से  बोला  ---"  हे  पिताजी  !  मैं  आपका  अपमान  नहीं  कर  रहा  ,  मैं  तो  वही  कह  रहा  हूँ  जो  सर्वकालिक  सत्य  है  ,  यदि  आप  सत्य  को  पहचान  नहीं  पाते  तो  यह  आपकी  कमी   व  अज्ञानता  है   l "  अब  तो  ऋषि  कहोड़  के  क्रोध  का  ठिकाना   न  रहा  , उन्होंने  क्रोध  में  अपने  कमंडल  से  जल  हाथ  में  लेकर   उसे  अभिमंत्रित  करते  हुए  बोले  --- "  मैं  ऋषि  कहोड़  !  तुझ  अजन्मे  बालक  को  शाप  देता  हूँ   कि  जब  तू  जन्म  लेगा  तो  तेरा  शरीर  आठ  स्थानों  से  टेढ़ा -मेढ़ा  हो  जायेगा  l  लोग  तुझे  देखकर  हँसेंगे  , उपहास  करेंगे  l "   यह  क्रोध  की  अति  थी   l आठ  स्थानों  से   कुबड़े  होने  का  यह  अभिशाप  बालक  को   योग  साधना  से ,  योग  के  आठ  अंगों  से   सर्वथा   वंचित  करने  के  लिए  था  l   अजन्मा  शिशु  जोर  से  हँसा  और  बोला --- "  आप  तो  अज्ञानी  की  तरह  बरताव  कर  रहे  हैं  l  शरीर  तो  वस्त्र  है , आत्मा  किसी  भी  शाप  या  वरदान  से  अप्रभावित  रहती  है  l " बालक  ने  जब  जन्म  लिया  तो  ऋषि  कहोड़  का  शाप  फलीभूत  हुआ  l आठ  स्थानों  से  टेढ़ा -मेढ़ा  होने  के  कारण  उन्हें  'अष्टावक्र' कहा  गया   l  अष्टावक्र  महान  ज्ञानी  थे  , वे  सुख -दुःख  से  परे  आनंद अवस्था  में  रहते  थे  l  राजा  जनक  उनसे  ज्ञान  प्राप्त  करते  और  उनका  बहुत  सम्मान  करते  थे  l