दुर्गम ,,बियाबान रास्तों से होती हुई नदी गुजर रही थी । उसके प्रवाह में जोश था , उमंग थी और ताजगी थी । उसका रुख देखकर पहाड़ी झरने ने उससे पूछा -" बहन नदी ! तुम इतने कठिन रास्तों पर अकेली ही चलती चली जाती हो , तुम्हे कभी अकेलापन नहीं लगता । " नदी बोली --" बंधु ! अपना सर्वस्व मिटाकर अनंत महासागर में विलीन हो जाने की कल्पना मात्र ही मेरे अंदर उत्साह का संचार कर देती है । "
जो त्याग और बलिदान की राह पर चलते हैं , उन्हें जमाने के साथ की फिक्र नहीं होती और एक उफनती नदी की तरह वे अपने रास्ते खुद बनाते चलते हैं ।
जो त्याग और बलिदान की राह पर चलते हैं , उन्हें जमाने के साथ की फिक्र नहीं होती और एक उफनती नदी की तरह वे अपने रास्ते खुद बनाते चलते हैं ।
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