भगवान का अनुग्रह केवल आत्मपरिष्कार से मिलता है, अन्य किसी उपाय से नहीं | अध्यात्म मनुष्य के सतत एवं निरंतर परिशोधन एवं रूपांतरण की प्रक्रिया है | केवल दिखावटी पूजा-पाठ एवं कर्मकांड से परमात्मा को धोखे में नहीं डाला जा सकता |
संत आगस्टाइन ने जीवन के अंतिम दिनों में एक पुस्तक लिखी--"दि सिटी ऑफ गॉड" इस पुस्तक में उन्होंने इस बात पर विशेष रूप से बल दिया है कि यदि व्यक्ति शुद्ध-सात्विक जीवन जी सके और भगवान के इस संसार को समुन्नत बनाने में कुछ समय दे सके, तो कोई कारण नहीं कि उसे ब्राह्मी चेतना की अनुभूति न हो सके, जो संसार के कण-कण में विद्दमान है ।
सेंट कैथरीन ने भी अपनी पुस्तक " दि ऑल परवेडिंग गॉड " में लिखा है ---- हमारी सबसे बड़ी विडंबना यह है कि हम परमात्म सत्ता का साक्षात्कार तो करना चाहते हैं, पर उसके लिये जो अनुबंध हैं, उसे पूरा करने के वजाय व्यर्थ के आडंबर में अपना श्रम, समय और बहुमूल्य मानव जीवन बर्बाद कर देते हैं । वे लिखती हैं-- सच्चाई तो यह है कि इस सर्वव्यापी सत्ता का अनुदान पाने के लिये हमें कुछ अतिरिक्त करने की आवश्यकता नहीं, आवश्यक है हम सच्चे इनसान बने
क्योंकि इसी रूप में भगवान ने हमें इस संसार में भेजा है ।
संत आगस्टाइन ने जीवन के अंतिम दिनों में एक पुस्तक लिखी--"दि सिटी ऑफ गॉड" इस पुस्तक में उन्होंने इस बात पर विशेष रूप से बल दिया है कि यदि व्यक्ति शुद्ध-सात्विक जीवन जी सके और भगवान के इस संसार को समुन्नत बनाने में कुछ समय दे सके, तो कोई कारण नहीं कि उसे ब्राह्मी चेतना की अनुभूति न हो सके, जो संसार के कण-कण में विद्दमान है ।
सेंट कैथरीन ने भी अपनी पुस्तक " दि ऑल परवेडिंग गॉड " में लिखा है ---- हमारी सबसे बड़ी विडंबना यह है कि हम परमात्म सत्ता का साक्षात्कार तो करना चाहते हैं, पर उसके लिये जो अनुबंध हैं, उसे पूरा करने के वजाय व्यर्थ के आडंबर में अपना श्रम, समय और बहुमूल्य मानव जीवन बर्बाद कर देते हैं । वे लिखती हैं-- सच्चाई तो यह है कि इस सर्वव्यापी सत्ता का अनुदान पाने के लिये हमें कुछ अतिरिक्त करने की आवश्यकता नहीं, आवश्यक है हम सच्चे इनसान बने
क्योंकि इसी रूप में भगवान ने हमें इस संसार में भेजा है ।
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