अध्यात्म मनोविज्ञान कहता है कि रोग पापवृति जैसा चिंतन रखने से जन्म लेते हैं |
सुख पुण्यों का फल है, जो हम नित्य कर्म करके अर्जित करते हैं । पूर्व जन्म के सत्कर्म हैं या नहीं, इसकी कोई जानकारी नहीं, लेकिन इस जन्म का पुण्य तो रोज श्रेष्ठ कार्य, श्रेष्ठ चिंतन करके कमाया जा सकता है । दुःख, रोग और पापों का नाश करने में निष्काम कर्म से बढ़कर कोई उपाय नहीं । परमात्मा की निष्काम भक्ति-सेवा से सभी दुःख , रोग नष्ट हो जाते हैं ।
सुख पुण्यों का फल है, जो हम नित्य कर्म करके अर्जित करते हैं । पूर्व जन्म के सत्कर्म हैं या नहीं, इसकी कोई जानकारी नहीं, लेकिन इस जन्म का पुण्य तो रोज श्रेष्ठ कार्य, श्रेष्ठ चिंतन करके कमाया जा सकता है । दुःख, रोग और पापों का नाश करने में निष्काम कर्म से बढ़कर कोई उपाय नहीं । परमात्मा की निष्काम भक्ति-सेवा से सभी दुःख , रोग नष्ट हो जाते हैं ।
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