मनुष्य के व्यक्तिगत जीवन एवं मानव समाज में सुख शांति की परिस्थितियाँ किस आधार पर बनेंगी ? इस प्रश्न का उत्तर है--- मनुष्य में मनुष्यता के विकास से |
आज व्यक्तित्व को न केवल श्रेष्ठ वरन अधिक समर्थ भी बनाये जाने की आवश्यकता है ताकि वे विकृतियों से बचने बचाने में, विपत्तियों से जूझने में प्रवीण एवं सफल सिद्ध हो सके | यह श्रेष्ठता एवं समर्थता शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक तीनो ही स्तर की होनी चाहिये ताकि मनुष्य की कर्म, ज्ञान एवं भाव की त्रिविध धाराओं को उच्चस्तरीय बनाया जा सके | भावनाओं का परिष्कार ,
व्यक्तित्व का परिष्कार कर व्यक्ति परम शांति, आनंद और प्रकाश की प्राप्ति कर सकता है |
आज आवश्यकता इस बात की है कि हम अपनी द्रष्टि को सीमित तथा क्षणिक स्वार्थों से हटायें, अहंकार की बेड़ियों को तोड़ें और स्नेह-सौजन्य के आधार पर विकसित " वसुधैव कुटुम्बकम " की भावना को अंगीकार करें | यह छोटा चरण भी व्यक्तित्व के विकास की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित होगा और इसी के सहारे विश्व वसुंधरा पर सुख शांति का साम्राज्य स्थापित हो सकेगा |
आज व्यक्तित्व को न केवल श्रेष्ठ वरन अधिक समर्थ भी बनाये जाने की आवश्यकता है ताकि वे विकृतियों से बचने बचाने में, विपत्तियों से जूझने में प्रवीण एवं सफल सिद्ध हो सके | यह श्रेष्ठता एवं समर्थता शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक तीनो ही स्तर की होनी चाहिये ताकि मनुष्य की कर्म, ज्ञान एवं भाव की त्रिविध धाराओं को उच्चस्तरीय बनाया जा सके | भावनाओं का परिष्कार ,
व्यक्तित्व का परिष्कार कर व्यक्ति परम शांति, आनंद और प्रकाश की प्राप्ति कर सकता है |
आज आवश्यकता इस बात की है कि हम अपनी द्रष्टि को सीमित तथा क्षणिक स्वार्थों से हटायें, अहंकार की बेड़ियों को तोड़ें और स्नेह-सौजन्य के आधार पर विकसित " वसुधैव कुटुम्बकम " की भावना को अंगीकार करें | यह छोटा चरण भी व्यक्तित्व के विकास की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित होगा और इसी के सहारे विश्व वसुंधरा पर सुख शांति का साम्राज्य स्थापित हो सकेगा |
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