' ध्वंस सरल है | उसे छोटी चिनगारी भी कर सकती है । गौरव सृजनात्मक कार्यों में है । मनुष्य का चिंतन और प्रयास सृजनात्मक प्रयोजनों में ही निरत रहना चाहिये । '
अशुभ को, अनीति को, अधर्म को मिटाने के लिये चिंतित एवं चिंता करने की जरुरत नहीं है, इसके लिये तो ' आत्मज्योति ' को उभार देना ही पर्याप्त है ।
स्वामी विवेकानंद रात-दिन कहते रहे--- " हे गौरीनाथ ! हे जगदंबे ! मुझे मनुष्यत्व दो । हे माँ ! मेरी दुर्बलता और कापुरुषता को दूर कर दो, मुझे मनुष्य बना दो । "
हम भी अपने जीवन के हर क्षण की कीमत को समझते हुए उसका सदुपयोग करें तो जीवन में सकारात्मक परिवर्तन की शुरुआत हो सकती है । यदि हम अपने जीवन का परिष्कार करते हैं, शुभ कर्म करते हैं, शुद्ध भाव के साथ भगवान से प्रार्थना करते हैं और उनकी उपासना करने के साथ उनके प्रति समर्पण व शरणागति का भाव रखते हैं तो निश्चित रूप से नित्य-निरंतर हमारे द्वारा किया जाने वाला यह अभ्यास अपनी शुभ परिणति के रूप में हमारी शक्तियों को जाग्रत करता है, जिससे हमारा जीवन सफल हो सकता है ।
अशुभ को, अनीति को, अधर्म को मिटाने के लिये चिंतित एवं चिंता करने की जरुरत नहीं है, इसके लिये तो ' आत्मज्योति ' को उभार देना ही पर्याप्त है ।
स्वामी विवेकानंद रात-दिन कहते रहे--- " हे गौरीनाथ ! हे जगदंबे ! मुझे मनुष्यत्व दो । हे माँ ! मेरी दुर्बलता और कापुरुषता को दूर कर दो, मुझे मनुष्य बना दो । "
हम भी अपने जीवन के हर क्षण की कीमत को समझते हुए उसका सदुपयोग करें तो जीवन में सकारात्मक परिवर्तन की शुरुआत हो सकती है । यदि हम अपने जीवन का परिष्कार करते हैं, शुभ कर्म करते हैं, शुद्ध भाव के साथ भगवान से प्रार्थना करते हैं और उनकी उपासना करने के साथ उनके प्रति समर्पण व शरणागति का भाव रखते हैं तो निश्चित रूप से नित्य-निरंतर हमारे द्वारा किया जाने वाला यह अभ्यास अपनी शुभ परिणति के रूप में हमारी शक्तियों को जाग्रत करता है, जिससे हमारा जीवन सफल हो सकता है ।
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