आजर कैवाँ पारसी धर्म के बड़े पक्के और सच्चे अनुयायी थे, उन्होंने पारसी धर्म का उच्च आदर्श उपस्थित कर उसकी रक्षा की । आजर कैवाँ फारस के शाही खानदान के व्यक्ति थे किन्तु उन्होंने अपने जीवन में भोग-विलास को नहीं तप और त्याग को प्रमुखता दी । वे भारतीय योग-साधना की शिक्षा लेने भारत भी आये थे । वे बड़े ही अहिंसावादी और जीव दया समर्थक थे और सदैव ही माँसाहार का विरोध किया करते थे ।
एक बार एक मुसलमान ने इनसे पूछा--- आप अपने अनुयायियों को मांस खाने से क्यों रोकते हैं ? मांस खाना तो पारसियों में जायज माना जाता है । "
उन्होंने उत्तर दिया--- " जीव हिंसा और मांस खाने की आज्ञा किसी भी धर्म में नहीं है । जब काबा-शरीफ की यात्रा की जाती है तो मांस भोजन का निषेध रहता है | जानते हो क्यों ? इसलिए कि काबा-शरीफ ईश्वर का घर माना जाता है । इसी तरह जो भगवान का भक्त है, उस पर विश्वास रखता है, उसके लिए उसका दिल ही काबा है, ईश्वर का घर है । भक्ति द्वारा ह्रदय में परमात्मा की खोज करने वाले के लिए जीव हिंसा अथवा मांस भोजन उचित नहीं हो सकता । मेरे सारे शिष्य और अनुयायी ह्रदय में ही परमात्मा की खोज करते हैं, उनको मैं जीव-हिंसा न करने और मांस न खाने के लिए कहता हूँ । "
एक बार एक मुसलमान ने इनसे पूछा--- आप अपने अनुयायियों को मांस खाने से क्यों रोकते हैं ? मांस खाना तो पारसियों में जायज माना जाता है । "
उन्होंने उत्तर दिया--- " जीव हिंसा और मांस खाने की आज्ञा किसी भी धर्म में नहीं है । जब काबा-शरीफ की यात्रा की जाती है तो मांस भोजन का निषेध रहता है | जानते हो क्यों ? इसलिए कि काबा-शरीफ ईश्वर का घर माना जाता है । इसी तरह जो भगवान का भक्त है, उस पर विश्वास रखता है, उसके लिए उसका दिल ही काबा है, ईश्वर का घर है । भक्ति द्वारा ह्रदय में परमात्मा की खोज करने वाले के लिए जीव हिंसा अथवा मांस भोजन उचित नहीं हो सकता । मेरे सारे शिष्य और अनुयायी ह्रदय में ही परमात्मा की खोज करते हैं, उनको मैं जीव-हिंसा न करने और मांस न खाने के लिए कहता हूँ । "
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