एक संपन्न अमरीकी परिवार में जन्मे डॉ. पाउलिंग से किसी ने पूछा---- " आप इतने महान वैज्ञानिक हो कर भी इतनी सामान्य जिंदगी क्यों बिताते हैं ? " तो उन्होंने गम्भीर होकर कहा--- " विज्ञान हमें मनुष्यता की सेवा करना सिखाता है । " उनके अन्वेषण विज्ञान जगत के अलौकिक उपहार हैं |
अणुविद्दा पर उन्होंने अनेक नई जानकारियां दी हैं । डॉ. पाउलिंग ने बताया---- " एटमी शक्ति को मानव कल्याण, रसायन, चिकित्सा , उद्दोग व उत्पादन मे लगाकर उसका सदुपयोग किया जाना चाहिए । एटमी धमकों से जो जहरीली गैस पैदा होती है, इससे सारे संसार के बच्चे निर्बल होंगे । रोग और नई बीमारियां फैलेंगी, अकाल और अनावृष्टि से वीभत्स द्रश्य उपस्थित होंगे । "
जब विज्ञान के पंडित डॉ. पाउलिंग ने देखा कि इस गम्भीरता को लोग पढ़कर भी अनुभव नहीं करते हें तो यह मानव-संस्कृति के साथ महान घात होगा इसलिए वे एटमी धमाकों के विरोध में एकाकी प्रयत्नों में जुट गये । जब किसी ने साथ न दिया तो उन्होंने अकेले ही एक दिन वाशिंगटन मे व्हाईट हाउस के सामने धरना दिया । यद्दपि वे अकेले थे पर एक विद्वान व्यक्ति की शक्ति लाख अनपढ़ों से अधिक होती है । उनके अकेले धरने से बुद्धिमान लोग चौंक पड़े और उन्होंने अनुभव किया कि आज का शिक्षित समुदाय यदि मानवता की सुरक्षा के लिए कटिबद्ध नहीं होता तो विश्व का सर्वनाश ही हो सकता है । स्वयं राष्ट्रपति ने भी इस बात को माना और उन्हें आवशयक उपाय करने का आश्वासन दिया ।
मानव-संस्कृति को विनाश से बचाने के लिए उन्होंने सारे संसार का दौरा किया और विश्व के
11 हजार प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों, साहित्यकारों, शिक्षा-शास्त्रियों के हस्ताक्षर लिए और एक संयुक्त अपील की कि संसार कों इन एटमी धमाकों के प्रति सजग हो जाना चाहिए । विद्वान व्यक्तियों के प्रयत्न जब शांति और सच्चाई की दिशा में होते हैं तो उन्हें व्यापक समर्थन मिलता है ।
एक महान व्यक्ति के कठिन परिश्रम और प्रयत्नों का प्रभाव हुआ कि मास्को में रूस, अमेरिका और ब्रिटेन ने एटमी विस्फोट समाप्त करने की सन्धि पर हस्ताक्षर किये, उस दिन सारे संसार ने एक नये संतोष और शांति की साँस ली । उन्हें दो बार शांति के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया ।
यदि संसार के और भी शिक्षित और प्रभावशील व्यक्ति इस तरह राजनीति, समाज, अर्थनीति, उद्दोग, शिक्षा आदि में मानव कल्याण की द्रष्टि से परिवर्तन लाने के लिए कटिबद्ध हो जायें तो सारे संसार का नक्शा ही बदल सकता है । युद्ध की विभीषिका, राजनीति-बाजी, छल-कपट, अहंकार,
दंभ और प्रपंचपूर्ण दुनिया को----------- शांति, सहयोग, सहअस्तित्व, नेकी, ईमानदारी आदि सदाचार
में बदलकर मानव जाति का भारी हित सम्पादित किया जा सकता है ।
अणुविद्दा पर उन्होंने अनेक नई जानकारियां दी हैं । डॉ. पाउलिंग ने बताया---- " एटमी शक्ति को मानव कल्याण, रसायन, चिकित्सा , उद्दोग व उत्पादन मे लगाकर उसका सदुपयोग किया जाना चाहिए । एटमी धमकों से जो जहरीली गैस पैदा होती है, इससे सारे संसार के बच्चे निर्बल होंगे । रोग और नई बीमारियां फैलेंगी, अकाल और अनावृष्टि से वीभत्स द्रश्य उपस्थित होंगे । "
जब विज्ञान के पंडित डॉ. पाउलिंग ने देखा कि इस गम्भीरता को लोग पढ़कर भी अनुभव नहीं करते हें तो यह मानव-संस्कृति के साथ महान घात होगा इसलिए वे एटमी धमाकों के विरोध में एकाकी प्रयत्नों में जुट गये । जब किसी ने साथ न दिया तो उन्होंने अकेले ही एक दिन वाशिंगटन मे व्हाईट हाउस के सामने धरना दिया । यद्दपि वे अकेले थे पर एक विद्वान व्यक्ति की शक्ति लाख अनपढ़ों से अधिक होती है । उनके अकेले धरने से बुद्धिमान लोग चौंक पड़े और उन्होंने अनुभव किया कि आज का शिक्षित समुदाय यदि मानवता की सुरक्षा के लिए कटिबद्ध नहीं होता तो विश्व का सर्वनाश ही हो सकता है । स्वयं राष्ट्रपति ने भी इस बात को माना और उन्हें आवशयक उपाय करने का आश्वासन दिया ।
मानव-संस्कृति को विनाश से बचाने के लिए उन्होंने सारे संसार का दौरा किया और विश्व के
11 हजार प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों, साहित्यकारों, शिक्षा-शास्त्रियों के हस्ताक्षर लिए और एक संयुक्त अपील की कि संसार कों इन एटमी धमाकों के प्रति सजग हो जाना चाहिए । विद्वान व्यक्तियों के प्रयत्न जब शांति और सच्चाई की दिशा में होते हैं तो उन्हें व्यापक समर्थन मिलता है ।
एक महान व्यक्ति के कठिन परिश्रम और प्रयत्नों का प्रभाव हुआ कि मास्को में रूस, अमेरिका और ब्रिटेन ने एटमी विस्फोट समाप्त करने की सन्धि पर हस्ताक्षर किये, उस दिन सारे संसार ने एक नये संतोष और शांति की साँस ली । उन्हें दो बार शांति के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया ।
यदि संसार के और भी शिक्षित और प्रभावशील व्यक्ति इस तरह राजनीति, समाज, अर्थनीति, उद्दोग, शिक्षा आदि में मानव कल्याण की द्रष्टि से परिवर्तन लाने के लिए कटिबद्ध हो जायें तो सारे संसार का नक्शा ही बदल सकता है । युद्ध की विभीषिका, राजनीति-बाजी, छल-कपट, अहंकार,
दंभ और प्रपंचपूर्ण दुनिया को----------- शांति, सहयोग, सहअस्तित्व, नेकी, ईमानदारी आदि सदाचार
में बदलकर मानव जाति का भारी हित सम्पादित किया जा सकता है ।
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