अरस्तू जैसा गुरु पाकर ही सिकन्दर महान बना l एक साधारण मिट्टी से बने राजकुमार सिकन्दर को फौलादी बना देने का सारा श्रेय अरस्तू को ही है । अरस्तू के जीवन का लक्ष्य लोक शिक्षा और व्यक्ति-निर्माण था । उन्होंने अपनी महान उपलब्धियों का उपयोग व्यक्तिगत लाभ के लिए कभी नहीं किया । उन्होंने केवल सिकन्दर को ही नहीं पूरे राष्ट्र को शिक्षा दी । सिकन्दर की सेना का एक-एक सैनिक सिकन्दर की तरह वीर और बलशाली था । एक अकेले सिकन्दर में वह शक्ति किस प्रकार संभव हो सकती थी कि संसार कों विजय करने का साहस कर सकता अथवा कमजोर चरित्र और निर्बल ह्रदय वाले व्यक्तियों की सेना लेकर दूर देशों तक जाकर इतिहास का निर्माण कर पाता ।
यह अरस्तू की शिक्षाओं का ही जादू था कि मेसीडोनिया जैसे देश के लोग इतने वीर, साहसी और कष्ट-सहिष्णु बन सके, जो उन्होंने तूफानों के बीच से रास्ता बनाकर भी अपने देश के यश और प्रभाव का विस्तार किया । इटली के प्रसिद्ध कवि दान्ते ने अरस्तू को विद्वानों का अग्रतम नेता कहा है । वह अपने समय का विचार सम्राट था, उसके शब्दों के साथ उसका चरित्र भी बोलता था ।
अरस्तू अपने शिष्यों के चरित्र गठन के लिए बहुत जोर देकर आदेश दिया करते थे ।
एक बार सिकन्दर का किसी स्त्री से अनुचित सम्बन्ध हो गया, अरस्तू उसे झिड़कते थे पर वह मानता न था । उस स्त्री को पता चल गया कि अरस्तू उसके मार्ग का काँटा है इसलिए उसने सोचा कि उसे बदनाम करके सिकन्दर से शत्रुता करा देनी चाहिए । वह एक दिन अरस्तू के पास पहुंची और एकांत में मिलने का प्रस्ताव किया । अरस्तू ने स्वीकार कर लिया और अपने शिष्यों द्वारा सिकन्दर तक भी यह सूचना पहुँचा दी, पर सूचना अरस्तू ने दी है यह न बताने का आदेश दिया ।
अरस्तू निश्चित समय पर निर्धारित उद्दान में पहुँच गये, सिकन्दर छिपा हुआ टोह में बैठा ही था । वह तरुणी आई, उसने अरस्तू के गले में हस्तपाश डाले और कहा --- क्या ही अच्छा हो कुछ देर खेले अरस्तू ने स्वीकृति दे दी । युवती ने उन्हे घोड़ा बनाया और खुद उनकी पीठ पर बैठकर चलाने लगी,
बूढ़ा घोड़ा लड़की को पीठ पर बिठाकर घुटनों के बल चल रहा था कि सिकन्दर सामने आ पहुँचा और क्रोध से कहा--- गुरूजी यह क्या ?
अरस्तू ने अविचल भाव से धैर्यपूर्वक कहा---- " बेटा ! मैं पहले ही कहा करता था । देखते नहीं, मुझ जैसे विद्वान और बूढ़े को जो माया इस तरह घुटनों के बल चलने को विवश कर सकती है वह तुम जैसे अपरिपक्व बुद्धि के नौजवानों को तो पेट के बल रेंगा कर और नाक रगड़ा कर ही दम लेगी । यदि तुम इस मार्ग से मुँह न मोड़ोगे तो इतिहास में नाम अंकित न करा सकोगे । "
अरस्तू के इस शिक्षण ने सिकन्दर पर भारी प्रभाव डाला और तबसे उसने उस ओर से मुँह ही मोड़ लिया । सिकन्दर ने एक प्रसंग में अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा था--- " पिता से तो मैंने शरीर मात्र प्राप्त किया है । वस्तुत: मेरे पिता तो अरस्तू हैं जिनने मुझे अनुपम ज्ञान देकर कुछ से कुछ बना दिया । " सिकन्दर ने जो गुण, स्वभाव और चरित्र गुरु के समीप रहकर प्राप्त किया था, उसी के बल पर उसने विशाल साम्राज्य बनाया और बड़ी-बड़ी सफलताएं प्राप्त कीं ।
यह अरस्तू की शिक्षाओं का ही जादू था कि मेसीडोनिया जैसे देश के लोग इतने वीर, साहसी और कष्ट-सहिष्णु बन सके, जो उन्होंने तूफानों के बीच से रास्ता बनाकर भी अपने देश के यश और प्रभाव का विस्तार किया । इटली के प्रसिद्ध कवि दान्ते ने अरस्तू को विद्वानों का अग्रतम नेता कहा है । वह अपने समय का विचार सम्राट था, उसके शब्दों के साथ उसका चरित्र भी बोलता था ।
अरस्तू अपने शिष्यों के चरित्र गठन के लिए बहुत जोर देकर आदेश दिया करते थे ।
एक बार सिकन्दर का किसी स्त्री से अनुचित सम्बन्ध हो गया, अरस्तू उसे झिड़कते थे पर वह मानता न था । उस स्त्री को पता चल गया कि अरस्तू उसके मार्ग का काँटा है इसलिए उसने सोचा कि उसे बदनाम करके सिकन्दर से शत्रुता करा देनी चाहिए । वह एक दिन अरस्तू के पास पहुंची और एकांत में मिलने का प्रस्ताव किया । अरस्तू ने स्वीकार कर लिया और अपने शिष्यों द्वारा सिकन्दर तक भी यह सूचना पहुँचा दी, पर सूचना अरस्तू ने दी है यह न बताने का आदेश दिया ।
अरस्तू निश्चित समय पर निर्धारित उद्दान में पहुँच गये, सिकन्दर छिपा हुआ टोह में बैठा ही था । वह तरुणी आई, उसने अरस्तू के गले में हस्तपाश डाले और कहा --- क्या ही अच्छा हो कुछ देर खेले अरस्तू ने स्वीकृति दे दी । युवती ने उन्हे घोड़ा बनाया और खुद उनकी पीठ पर बैठकर चलाने लगी,
बूढ़ा घोड़ा लड़की को पीठ पर बिठाकर घुटनों के बल चल रहा था कि सिकन्दर सामने आ पहुँचा और क्रोध से कहा--- गुरूजी यह क्या ?
अरस्तू ने अविचल भाव से धैर्यपूर्वक कहा---- " बेटा ! मैं पहले ही कहा करता था । देखते नहीं, मुझ जैसे विद्वान और बूढ़े को जो माया इस तरह घुटनों के बल चलने को विवश कर सकती है वह तुम जैसे अपरिपक्व बुद्धि के नौजवानों को तो पेट के बल रेंगा कर और नाक रगड़ा कर ही दम लेगी । यदि तुम इस मार्ग से मुँह न मोड़ोगे तो इतिहास में नाम अंकित न करा सकोगे । "
अरस्तू के इस शिक्षण ने सिकन्दर पर भारी प्रभाव डाला और तबसे उसने उस ओर से मुँह ही मोड़ लिया । सिकन्दर ने एक प्रसंग में अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा था--- " पिता से तो मैंने शरीर मात्र प्राप्त किया है । वस्तुत: मेरे पिता तो अरस्तू हैं जिनने मुझे अनुपम ज्ञान देकर कुछ से कुछ बना दिया । " सिकन्दर ने जो गुण, स्वभाव और चरित्र गुरु के समीप रहकर प्राप्त किया था, उसी के बल पर उसने विशाल साम्राज्य बनाया और बड़ी-बड़ी सफलताएं प्राप्त कीं ।
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