उनका विचार था कि---- " जिस समाज से अनेक साधनों एवं सेवाओं को पाकर हमारा जीवन पल रहा है, इसका कर्ज नगद रूप में चुका सकना असंभव है । समाज की भलाई के लिये काम न आ सके तो इससे बुरी बात क्या हो सकती है । "
समाज में जब भी वे शोषितों और दलितों के प्रति अमानवीय व्यवहार देखते तो उनका ह्रदय द्रवित हो जाता था । वे कहते थे ------ " अपने से कमजोरों की सेवा-सहायता कर उन पर दया करने के लिए ईश्वर ने शक्ति एवं सामर्थ्य दी है न कि उन्हें पीड़ित करने के लिए । निष्ठुरतापूर्वक अत्याचार करते रहना तो शरीर व आत्मा दोनों के लिए अहितकर है । इससे सुख-संतोष की अपार सम्पति से सदा ही वंचित रहना पड़ता है । "
उनकी इस मानव कल्याणकारी प्रेरणा से अनेकों ने विध्वंसात्मक मार्ग छोड़कर रचनात्मक कार्यों में स्वयं को नियोजित किया । समाज उत्थान के लिए दलितों के उद्धार का महत्व समझकर लाखों हाथ इस वर्ग को उठाने आगे बढ़े । इस रचनात्मक कार्य ने उनके प्रति श्रद्धा का परिपोषण किया ।
वे हिन्दी साहित्य के सफ़ल साहित्यकार होने के साथ-साथ दीन-दुःखियों के प्रिय, जन प्रिय नेता, आदर्श समाज सेवी, राष्ट्रभक्त और आत्मविश्वासी थे ।
समाज में जब भी वे शोषितों और दलितों के प्रति अमानवीय व्यवहार देखते तो उनका ह्रदय द्रवित हो जाता था । वे कहते थे ------ " अपने से कमजोरों की सेवा-सहायता कर उन पर दया करने के लिए ईश्वर ने शक्ति एवं सामर्थ्य दी है न कि उन्हें पीड़ित करने के लिए । निष्ठुरतापूर्वक अत्याचार करते रहना तो शरीर व आत्मा दोनों के लिए अहितकर है । इससे सुख-संतोष की अपार सम्पति से सदा ही वंचित रहना पड़ता है । "
उनकी इस मानव कल्याणकारी प्रेरणा से अनेकों ने विध्वंसात्मक मार्ग छोड़कर रचनात्मक कार्यों में स्वयं को नियोजित किया । समाज उत्थान के लिए दलितों के उद्धार का महत्व समझकर लाखों हाथ इस वर्ग को उठाने आगे बढ़े । इस रचनात्मक कार्य ने उनके प्रति श्रद्धा का परिपोषण किया ।
वे हिन्दी साहित्य के सफ़ल साहित्यकार होने के साथ-साथ दीन-दुःखियों के प्रिय, जन प्रिय नेता, आदर्श समाज सेवी, राष्ट्रभक्त और आत्मविश्वासी थे ।
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