अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय और ब्रह्मचर्य ------ इनको हिन्दू धर्म के पंच महाव्रत माना गया है----- इन्ही पांच स्तम्भों पर गाँधीजी का जीवन और दर्शन टिका हुआ था ।
पर वह उनकी उस व्याख्या को नहीं मानते थे जो कि पुरातन-पंथी किया करते हैं, वरन वे इन सब पर एक बुद्धिवादी वैज्ञानिक की द्रष्टि से विचार करते थे ।
ब्रह्मचर्य के विषय में उन्होंने ऐसा ही द्रष्टिकोण अपनाया था ------- गाँधीजी हर तरह से स्त्रियों से दूर रहकर, उनका ख्याल भी दिल में न उठे ऐसा वातावरण बनाकर, ब्रह्मचर्य के पालन करने को कुछ भी महत्व नहीं देते थे । उनका कहना था वर्तमान युग की सामाजिक व्यवस्था में तो यह सम्भव भी नहीं है और मूर्खतापूर्ण भी समझा जायेगा ।
उन्होंने देखा कि कितने ही यूरोपियन ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, पर स्त्रियों से दूर रहने की बात को न तो वे जानते हैं और न ही उसे महत्व देते हैं ।
गाँधीजी तो कहते थे कि मनुष्य स्त्रियों में रहे, उनके कार्यों में उसी प्रकार सहयोग करता रहे, जैसे पुरुषों से करता है और फिर भी किसी प्रकार की वासना या दुर्भावना उसके मन से न उठे वही सच्चा ब्रह्मचारी है ।
गाँधीजी और बा का दाम्पत्य जीवन कितना उच्च कोटि का और भारत के प्राचीनतम धार्मिक आदर्शों के अनुकूल था, इसकी चर्चा करते हुए श्री विनोबा ने अपने संस्मरण में कहा है -------
" बा और बापू का जो संबंध था वह अवर्णनीय था । अपने यहां शास्त्रकारों ने विवाह के समय एक विधि बताई है ----- वशिष्ठ और अरुन्धती का दर्शन करना । आकाश में ये दो तारिकाएं हैं । भारत के अधिकांश ऋषि कुछ समय बाद सन्यास लेकर पत्नी से पृथक रहकर लोक-सेवा करते थे, पर वशिष्ठ और अरुन्धती सदैव एक साथ रहे । कारण यह कि वे एक दूसरे के पूरक थे, बाधक नहीं ।
अरुन्धती का अर्थ ही है--- जो मार्ग में बाधा खड़ी न करे ।
पति ऊँचा चढ़ने वाला हो तो वह भी उसके साथ ऊँचा चढ़ने को तैयार रहे । बा और बापू ऐसा ही करते थे । बापू जेल में जाते थे तो बा भी जेल मे, बापू सत्याग्रह करते तो बा भी सत्याग्रह करतीं, वह जो भी करें बा उसमे उनके साथ रहती थीं । उनके अच्छे कामों में वह रूकावट डालने वाली न थीं । इसी से हम उनको वर्तमान समय में वशिष्ठ और अरुन्धती का उदाहरण मान सकते हैं । "
बा के लिए गाँधीजी ने कहा था ---- " मेरी पत्नी मेरे अन्तर को जिस प्रकार हिलाती है, उस प्रकार दुनिया की कोई दूसरी-स्त्री नहीं हिला सकती । उसके लिए ममता के एक अटूट बन्धन की भावना दिन-रात मेरे अन्तर में जागृत रहती है । "
पर वह उनकी उस व्याख्या को नहीं मानते थे जो कि पुरातन-पंथी किया करते हैं, वरन वे इन सब पर एक बुद्धिवादी वैज्ञानिक की द्रष्टि से विचार करते थे ।
ब्रह्मचर्य के विषय में उन्होंने ऐसा ही द्रष्टिकोण अपनाया था ------- गाँधीजी हर तरह से स्त्रियों से दूर रहकर, उनका ख्याल भी दिल में न उठे ऐसा वातावरण बनाकर, ब्रह्मचर्य के पालन करने को कुछ भी महत्व नहीं देते थे । उनका कहना था वर्तमान युग की सामाजिक व्यवस्था में तो यह सम्भव भी नहीं है और मूर्खतापूर्ण भी समझा जायेगा ।
उन्होंने देखा कि कितने ही यूरोपियन ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, पर स्त्रियों से दूर रहने की बात को न तो वे जानते हैं और न ही उसे महत्व देते हैं ।
गाँधीजी तो कहते थे कि मनुष्य स्त्रियों में रहे, उनके कार्यों में उसी प्रकार सहयोग करता रहे, जैसे पुरुषों से करता है और फिर भी किसी प्रकार की वासना या दुर्भावना उसके मन से न उठे वही सच्चा ब्रह्मचारी है ।
गाँधीजी और बा का दाम्पत्य जीवन कितना उच्च कोटि का और भारत के प्राचीनतम धार्मिक आदर्शों के अनुकूल था, इसकी चर्चा करते हुए श्री विनोबा ने अपने संस्मरण में कहा है -------
" बा और बापू का जो संबंध था वह अवर्णनीय था । अपने यहां शास्त्रकारों ने विवाह के समय एक विधि बताई है ----- वशिष्ठ और अरुन्धती का दर्शन करना । आकाश में ये दो तारिकाएं हैं । भारत के अधिकांश ऋषि कुछ समय बाद सन्यास लेकर पत्नी से पृथक रहकर लोक-सेवा करते थे, पर वशिष्ठ और अरुन्धती सदैव एक साथ रहे । कारण यह कि वे एक दूसरे के पूरक थे, बाधक नहीं ।
अरुन्धती का अर्थ ही है--- जो मार्ग में बाधा खड़ी न करे ।
पति ऊँचा चढ़ने वाला हो तो वह भी उसके साथ ऊँचा चढ़ने को तैयार रहे । बा और बापू ऐसा ही करते थे । बापू जेल में जाते थे तो बा भी जेल मे, बापू सत्याग्रह करते तो बा भी सत्याग्रह करतीं, वह जो भी करें बा उसमे उनके साथ रहती थीं । उनके अच्छे कामों में वह रूकावट डालने वाली न थीं । इसी से हम उनको वर्तमान समय में वशिष्ठ और अरुन्धती का उदाहरण मान सकते हैं । "
बा के लिए गाँधीजी ने कहा था ---- " मेरी पत्नी मेरे अन्तर को जिस प्रकार हिलाती है, उस प्रकार दुनिया की कोई दूसरी-स्त्री नहीं हिला सकती । उसके लिए ममता के एक अटूट बन्धन की भावना दिन-रात मेरे अन्तर में जागृत रहती है । "
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