' जहाँ राह गलत होती है वहां जीवन के सार्थक होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता , फिर भी सिकन्दर के संकल्प और व्यक्तित्व से बहुत कुछ सीखा जा सकता है जो सही मार्ग पर चलने वाले के लिए उपयोगी सिद्ध होगा । '
सिकन्दर का सपना था ---- विश्व विजय करने का | उस सपने को साकार करने के लिए उसने स्वयं को वैसा ही सुद्रढ़ बनाना आरम्भ कर दिया । उसका सपना कितना बड़ा था , साधारण व्यक्ति या साधारण राजा ऐसा सपना नहीं देख सकता था । सिकन्दर को अपनी असाधारणता पर विश्वास था । मनुष्य कितने बड़े संकल्प कर सकता है , उन संकल्पों को साकार भी कर सकता है , सिकन्दर उसका अनुपम उदाहरण है ।
भूल उसकी यही थी कि उसने केवल अपने अहम् की तृप्ति के लिए यह सब किया । यदि वह दूसरों के हित का ध्यान रखकर कोई ' बहुजन हिताय बहुजन सुखाय ' का सपना देखता तो उसकी दिशा भी सही मानी जाती और उसका परिणाम भी शुभ होता ।
सिकंदर ने विपाशा के तीर पर सैनिकों को आगे बढ़ने का आह्वान किया तो वे तैयार न हुए । सिकन्दर को इससे बड़ी निराशा हुई , उन्हें लौटना पड़ा । लौटते समय वह बहुत उदास था । उसके स्वप्न ही धूल में नहीं मिल गये थे वरन वह अपनी भूल पर पछता भी रहा था ।
स्वयं को विश्व विजेता सिद्ध करने के लिए उसने हजारों आदमियों का रक्त बहाया , कितनी ही माँगों का सिंदूर पोंछ दिया था , कितनी माताओं की गोद सूनी कर दी और कितने ही बच्चों को अनाथ कर दिया | हाय रे ! दुर्बुद्धि यह कैसी विजय है । यह विजय का सेहरा नहीं यह तो कलंक का टीका है । इन विचारों से वह बड़ा त्रस्त हो गया और उनसे मुक्त होने के लिए उसने शराब का सहारा लिया । भारत से लौटते समय वह बहुत पीने लगा था , रास्ते में ही उसे निमोनिया हुआ और मर गया ।
सिकन्दर केवल 33 वर्ष ही जी सका | उसने 13 वर्ष राज्य किया । विश्व विजय का पागलपन मस्तिष्क में बैठाये स्वयं कभी चैन से नहीं बैठा और न दूसरों को चैन से बैठने दिया । सिकन्दर का संकल्प , उसके लिए जुटाया गया साधन , श्रम , समय और जीवन किसी के काम नहीं आया , सब व्यर्थ हो गया , एक कहानी बन कर रह गया ।
सिकन्दर का सपना था ---- विश्व विजय करने का | उस सपने को साकार करने के लिए उसने स्वयं को वैसा ही सुद्रढ़ बनाना आरम्भ कर दिया । उसका सपना कितना बड़ा था , साधारण व्यक्ति या साधारण राजा ऐसा सपना नहीं देख सकता था । सिकन्दर को अपनी असाधारणता पर विश्वास था । मनुष्य कितने बड़े संकल्प कर सकता है , उन संकल्पों को साकार भी कर सकता है , सिकन्दर उसका अनुपम उदाहरण है ।
भूल उसकी यही थी कि उसने केवल अपने अहम् की तृप्ति के लिए यह सब किया । यदि वह दूसरों के हित का ध्यान रखकर कोई ' बहुजन हिताय बहुजन सुखाय ' का सपना देखता तो उसकी दिशा भी सही मानी जाती और उसका परिणाम भी शुभ होता ।
सिकंदर ने विपाशा के तीर पर सैनिकों को आगे बढ़ने का आह्वान किया तो वे तैयार न हुए । सिकन्दर को इससे बड़ी निराशा हुई , उन्हें लौटना पड़ा । लौटते समय वह बहुत उदास था । उसके स्वप्न ही धूल में नहीं मिल गये थे वरन वह अपनी भूल पर पछता भी रहा था ।
स्वयं को विश्व विजेता सिद्ध करने के लिए उसने हजारों आदमियों का रक्त बहाया , कितनी ही माँगों का सिंदूर पोंछ दिया था , कितनी माताओं की गोद सूनी कर दी और कितने ही बच्चों को अनाथ कर दिया | हाय रे ! दुर्बुद्धि यह कैसी विजय है । यह विजय का सेहरा नहीं यह तो कलंक का टीका है । इन विचारों से वह बड़ा त्रस्त हो गया और उनसे मुक्त होने के लिए उसने शराब का सहारा लिया । भारत से लौटते समय वह बहुत पीने लगा था , रास्ते में ही उसे निमोनिया हुआ और मर गया ।
सिकन्दर केवल 33 वर्ष ही जी सका | उसने 13 वर्ष राज्य किया । विश्व विजय का पागलपन मस्तिष्क में बैठाये स्वयं कभी चैन से नहीं बैठा और न दूसरों को चैन से बैठने दिया । सिकन्दर का संकल्प , उसके लिए जुटाया गया साधन , श्रम , समय और जीवन किसी के काम नहीं आया , सब व्यर्थ हो गया , एक कहानी बन कर रह गया ।
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