' अपने जीवन में एक साथ अंग्रेजी के प्रकाण्ड विद्वान , प्रख्यात पत्रकार , सजग समाज सेवी , जागरूक शिक्षा शास्त्री व आदर्शोन्मुख राजनीतिज्ञ के क्षेत्रों में अपनी सफलता की यश सुरभि बिखेरते हुए वे जिस ढंग से जिये वह भारत की नयी पीढ़ी के लिए आदर्श है । '
इंग्लैंड से बैरिस्टर बनकर वे स्वदेश लौटे । कई वर्षों तक बैरिस्टरी करने के बाद उन्होंने इस बात का अनुभव किया कि उनकी इस विद्वता और योग्यता का लाभ समाज को भी मिलना चाहिए , यह कृपण क धन की तरह उनके अपने ही हित में खर्च नहीं होना चाहिए । उन्होंने देखा कि देश शिक्षा की द्रष्टि से बहुत पिछड़ा है तो उन्होंने शिक्षा के प्रसार में अपना योगदान दिया । वे
पटना विश्वविद्यालय के वाइसचांसलर के रूप में उन्होंने शिक्षा जगत में अपना स्थायी नाम किया है । वे सोचते थे कि उनके इस जीवन का सदुपयोग कैसे हो । पटना विश्वविद्यालय के वाइसचांसलर के रूप में उन्होंने एक व्यक्ति का नहीं पूरी एक संस्था का कार्य किया ।
सत्साहित्य से उन्हें कितना लगाव था , इस तथ्य का प्रमाण है उनके द्वारा पटना में स्थापित रूप में स्मारक ----- ' सिन्हा पुस्तकालय ' । इस पुस्तकालय में 15000 से भी अधिक पुस्तकें हैं , ये सब पुस्तकें उन्होंने पढ़ी हैं और इनमे से अधिकांश उनकी अपनी , अपने पढ़ने के लिए खरीदी हुई हैं । अपनी बौद्धिक विरासत के रूप में वे समाज को अमर अनुदान दे गये |
इंग्लैंड से बैरिस्टर बनकर वे स्वदेश लौटे । कई वर्षों तक बैरिस्टरी करने के बाद उन्होंने इस बात का अनुभव किया कि उनकी इस विद्वता और योग्यता का लाभ समाज को भी मिलना चाहिए , यह कृपण क धन की तरह उनके अपने ही हित में खर्च नहीं होना चाहिए । उन्होंने देखा कि देश शिक्षा की द्रष्टि से बहुत पिछड़ा है तो उन्होंने शिक्षा के प्रसार में अपना योगदान दिया । वे
पटना विश्वविद्यालय के वाइसचांसलर के रूप में उन्होंने शिक्षा जगत में अपना स्थायी नाम किया है । वे सोचते थे कि उनके इस जीवन का सदुपयोग कैसे हो । पटना विश्वविद्यालय के वाइसचांसलर के रूप में उन्होंने एक व्यक्ति का नहीं पूरी एक संस्था का कार्य किया ।
सत्साहित्य से उन्हें कितना लगाव था , इस तथ्य का प्रमाण है उनके द्वारा पटना में स्थापित रूप में स्मारक ----- ' सिन्हा पुस्तकालय ' । इस पुस्तकालय में 15000 से भी अधिक पुस्तकें हैं , ये सब पुस्तकें उन्होंने पढ़ी हैं और इनमे से अधिकांश उनकी अपनी , अपने पढ़ने के लिए खरीदी हुई हैं । अपनी बौद्धिक विरासत के रूप में वे समाज को अमर अनुदान दे गये |
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