दादाभाई नौरोजी को भारतीय स्वाधीनता के जनक , भारत के वयोवृद्ध महापुरुष आदि आदर सूचक संबोधनों से स्मरण किया जाता है l ब्रिटिश संसद के सदस्य हो जाने पर उन्होंने भारत के हित के लिए अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगा दी l उन्हें भारतीयों ने जितना सम्मान दिया उतना ही अंग्रेजों ने भी दिया l इसका प्रमाण इंग्लैंड के श्री वर्डउड के उस पात्र से हो जाता है जो नुन्होने ' टाइम्स आफ इंडिया ' के लन्दन स्थित प्रतिनिधि को लिखा था ------ " दादाभाई नौरोजी उन लोगों में से थे जिनको किसी भी विषय का ज्ञान सम्पूर्ण होता है और जो तब तक जीवित रह सकते हैं जब तक जीवन की आकांक्षा का स्वयं ही त्याग न कर दें l वे हर बात को गंभीर ढंग से रूचि पूर्वक किया करते थे l उनके साथ बात करने पर ऐसा लगता था कि मृत्यु हो जाने पर भी दादाभाई नहीं मरेंगे , केवल उनका पार्थिव शरीर ही मरेगा l वे सदा के लिए अजर - अमर ही रहेंगे l "
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