एक समय था जब सम्राट अकबर के दबदबे से बड़े - बड़े राजा उसके आधीन हो गए थे l एकमात्र चित्तौड़ के महाराणा प्रताप को छोड़कर किसी राजा ने अकबर का सामना करने का साहस नहीं किया l पर उस समय भी नारी होते हुए भी रानी दुर्गावती ने दिल्ली सम्राट की विशाल सेना के सामने खड़े होने का साहस किया और उसे दो बार पराजित कर के पीछे खदेड़ दिया l
गौंडवाना नरेश दलपति शाह से उनका विवाह हुआ था l दो वर्ष बाद ही दलपति शाह का देहान्त हो जाने पर रानी दुर्गावती ने राज्य का कार्यभार संभाला l उनके कुशल प्रबंध से गौंडवाना का वैभव बढ़ता जा रहा था और यश दूर - दूर तक फैल रहा था l
एक स्त्री का इतना आगे बढ़ना और अधिकांश पुरुष शासकों के लिए उदाहरण स्वरुप बन जाना अन्य शासकों को खटकने लगा , अनेक ईर्ष्या करने वाले हो गए l सम्राट अकबर ने भी साम्राज्यवाद की लालसा में गौंडवाना पर आक्रमण करने का निश्चय किया l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने वाड्मय ' मरकर भी जो अमर हो गए ' में लिखा है ---- ' रानी दुर्गावती पर चढ़ाई करने की उसकी कार्यवाही का समर्थन हम किसी भी प्रकार नहीं कर सकते l रानी दुर्गावती से कभी यह आशंका नहीं हो सकती थी कि वह अकबर से शत्रुता कर उसे किसी प्रकार हानि पहुँचाने का प्रयत्न करेगी l फिर स्त्री पर आक्रमण करना एक प्रकार से कायरता की बात समझी जाती है l कोई कारण न होते हुए भी केवल इस भावना से चढ़ दौड़ना कि हमारी शक्ति और साधनों का वह मुकाबला कर ही न सकेगी तो उसे लूटा क्यों न जाये , उच्चता तथा श्रेष्ठता का प्रमाण नहीं माना जा सकता l इस प्रकार का आचरण मनुष्य को कभी स्थायी रूप से लाभदायक नही हो सकता आचार्यश्री ने आगे लिखा है --- ' यों तो डाकू दल भी अपनी संगठित शक्ति और अस्त्र - शस्त्रों के बल पर लूटमार करते हैं और अपने को बड़ा बहादुर समझते हैं l पर कभी किसी डाकू का अंत अच्छा हुआ हो , यह आज तक नहीं सुना गया l '
गौंडवाना नरेश दलपति शाह से उनका विवाह हुआ था l दो वर्ष बाद ही दलपति शाह का देहान्त हो जाने पर रानी दुर्गावती ने राज्य का कार्यभार संभाला l उनके कुशल प्रबंध से गौंडवाना का वैभव बढ़ता जा रहा था और यश दूर - दूर तक फैल रहा था l
एक स्त्री का इतना आगे बढ़ना और अधिकांश पुरुष शासकों के लिए उदाहरण स्वरुप बन जाना अन्य शासकों को खटकने लगा , अनेक ईर्ष्या करने वाले हो गए l सम्राट अकबर ने भी साम्राज्यवाद की लालसा में गौंडवाना पर आक्रमण करने का निश्चय किया l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने वाड्मय ' मरकर भी जो अमर हो गए ' में लिखा है ---- ' रानी दुर्गावती पर चढ़ाई करने की उसकी कार्यवाही का समर्थन हम किसी भी प्रकार नहीं कर सकते l रानी दुर्गावती से कभी यह आशंका नहीं हो सकती थी कि वह अकबर से शत्रुता कर उसे किसी प्रकार हानि पहुँचाने का प्रयत्न करेगी l फिर स्त्री पर आक्रमण करना एक प्रकार से कायरता की बात समझी जाती है l कोई कारण न होते हुए भी केवल इस भावना से चढ़ दौड़ना कि हमारी शक्ति और साधनों का वह मुकाबला कर ही न सकेगी तो उसे लूटा क्यों न जाये , उच्चता तथा श्रेष्ठता का प्रमाण नहीं माना जा सकता l इस प्रकार का आचरण मनुष्य को कभी स्थायी रूप से लाभदायक नही हो सकता आचार्यश्री ने आगे लिखा है --- ' यों तो डाकू दल भी अपनी संगठित शक्ति और अस्त्र - शस्त्रों के बल पर लूटमार करते हैं और अपने को बड़ा बहादुर समझते हैं l पर कभी किसी डाकू का अंत अच्छा हुआ हो , यह आज तक नहीं सुना गया l '
No comments:
Post a Comment