आदि शंकराचार्य न केवल वेद - वेदांग में पारंगत थे , वरन आत्मबल के भी धनी थे l वे शास्त्रार्थ करने मंडन मिश्र के यहाँ पहुंचे l निर्णायक की भूमिका मंडन मिश्र की पत्नी उभय भारती को सौंपी गई l वे भी परम विदुषी थीं l शास्त्रार्थ में कौन विजयी हुआ , इसकी कसौटी यह बताई थी कि दोनों के गले में उनके द्वारा पहनाई गई फूलों की माला जिसके गले में मुरझा जाएगी , उसी की हार मानी जाएगा l लम्बी अवधि तक चले शास्त्रार्थ के बाद मंडन मिश्र के गले की माला कुम्हला गई और वे पराजित घोषित हो गये l
मंडन मिश्र के गले में पड़ी माला क्यों कुम्हलाई , इस बारे में विद्वानों ने बहुत तथ्य खोजे l विद्वानों का कहना था कि दीर्घकालीन शास्त्रार्थ से मंडन मिश्र का आत्मविश्वास डिगने लगा , मनोबल टूटने से , अंतर में घबराहट होने से पसीना आने लगा और माला कुम्हला गई l जबकि शंकराचार्य योग के महान ज्ञाता थे l प्राण व मन पर उनका पूर्ण नियंत्रण था , उनकी माला वैसे ही ताजी रही l जिनका मनोबल बढ़ा - चढ़ा हो , उद्देश्य ऊँचे हों वे सर्वत्र विजयी होते हैं l
मंडन मिश्र के गले में पड़ी माला क्यों कुम्हलाई , इस बारे में विद्वानों ने बहुत तथ्य खोजे l विद्वानों का कहना था कि दीर्घकालीन शास्त्रार्थ से मंडन मिश्र का आत्मविश्वास डिगने लगा , मनोबल टूटने से , अंतर में घबराहट होने से पसीना आने लगा और माला कुम्हला गई l जबकि शंकराचार्य योग के महान ज्ञाता थे l प्राण व मन पर उनका पूर्ण नियंत्रण था , उनकी माला वैसे ही ताजी रही l जिनका मनोबल बढ़ा - चढ़ा हो , उद्देश्य ऊँचे हों वे सर्वत्र विजयी होते हैं l
No comments:
Post a Comment