महान व्यक्ति के अंदर अहंकार नहीं होता , उनमे त्याग की भावना होती है l मानवीय संवेदना के कारण वे सबके सुख - दुःख को अपना सुख - दुःख मानते हैं l उनकी सम्पूर्ण जिन्दगी औरों के लिए समर्पित हो जाती है l ऐसे व्यक्ति श्रेष्ठता का प्रमाण नहीं देते , बल्कि वे स्वयं प्रमाण होते हैं l महान व्यक्ति समस्त मानवता के लिए संवेदनशील होते हैं l किसी भी महान व्यक्ति की परख उसके बड़े - बड़े कार्यों से नहीं , बल्कि छोटे - छोटे कार्यों से ही हो जाती है l
महात्मा गाँधी छोटी - छोटी बातों से ही महात्मा बने l महात्मा गाँधी में विनम्रता और सबके लिए अपनत्व व आत्मीयता का भाव था ----- 1936 की बात है , गांधीजी वर्धा में सेवाग्राम चले गए l वहां रहकर उन्होंने आसपास के ग्रामीण लोगों से संपर्क साधना शुरू किया l वे नियमित रूप से निकटवर्ती गाँवों में जाते , लोगों को स्वच्छता का महत्व समझाते , स्वयं झाड़ू लेकर गली - कूंचों की सफाई करते तथा गरीब गंदे बच्चों को स्नान कराते l ग्रामीणों को स्वच्छता का पाठ पढ़ाने का यह क्रम महीनों तक नियमित रूप से चलता रहा l
बापू के इस प्रयास का कोई विशेष परिणाम निकलता न देख कर एक कार्यकर्ता ने कहा --- बापू ! इन पिछड़े लोगों को समझाने एवं आपके स्वयं सफाई करने से भी इन पर कोई प्रभाव तो पड़ता नहीं , फिर भी आप क्यों तन्मय होकर इस कार्य में लगे रहते हैं ? '
गांधीजी ने कहा --- बस ! इतने में ही धैर्य खो दिया l सदियों के संस्कार इतनी जल्दी थोड़े ही दूर हो जायेंगे l लम्बे काल तक इनके मध्य रहकर इनमे शिक्षा , स्वास्थ्य , सफाई के प्रति अभिरुचि एवं जागरूकता पैदा करनी होगी l
महात्मा गाँधी छोटी - छोटी बातों से ही महात्मा बने l महात्मा गाँधी में विनम्रता और सबके लिए अपनत्व व आत्मीयता का भाव था ----- 1936 की बात है , गांधीजी वर्धा में सेवाग्राम चले गए l वहां रहकर उन्होंने आसपास के ग्रामीण लोगों से संपर्क साधना शुरू किया l वे नियमित रूप से निकटवर्ती गाँवों में जाते , लोगों को स्वच्छता का महत्व समझाते , स्वयं झाड़ू लेकर गली - कूंचों की सफाई करते तथा गरीब गंदे बच्चों को स्नान कराते l ग्रामीणों को स्वच्छता का पाठ पढ़ाने का यह क्रम महीनों तक नियमित रूप से चलता रहा l
बापू के इस प्रयास का कोई विशेष परिणाम निकलता न देख कर एक कार्यकर्ता ने कहा --- बापू ! इन पिछड़े लोगों को समझाने एवं आपके स्वयं सफाई करने से भी इन पर कोई प्रभाव तो पड़ता नहीं , फिर भी आप क्यों तन्मय होकर इस कार्य में लगे रहते हैं ? '
गांधीजी ने कहा --- बस ! इतने में ही धैर्य खो दिया l सदियों के संस्कार इतनी जल्दी थोड़े ही दूर हो जायेंगे l लम्बे काल तक इनके मध्य रहकर इनमे शिक्षा , स्वास्थ्य , सफाई के प्रति अभिरुचि एवं जागरूकता पैदा करनी होगी l
No comments:
Post a Comment