गुरु - शिष्य भ्रमण को निकले l उन्हें राह में एक हाथी मिला , जो एक रस्सी से खूंटे से बँधा खड़ा था l उत्सुकतावश शिष्य ने महावत से पूछा --- " बंधु ! यह रस्सी तो पतली सी है और ये विशाल हाथी , जब चाहे इसे तोड़कर मुक्त हो सकता है , फिर यह भागता क्यों नहीं ? "
महावत बोला --- " जब ये हाथी छोटा था , तब यही रस्सी इसे बाँधने के लिए पर्याप्त थी और अब इसके पूर्व अनुभव इसे ये आभास ही नहीं होने देते कि ये रस्सी इतनी मजबूत नहीं कि उसे रोक सके l "
यह सुनकर गुरु बोले --- " मनुष्य भी इसी हाथी की तरह है l अपनी आत्मशक्ति को पहचानता नहीं और अपनी कमजोरियों के कारण दीन - हीन स्थिति में पड़ा रहता है l
महावत बोला --- " जब ये हाथी छोटा था , तब यही रस्सी इसे बाँधने के लिए पर्याप्त थी और अब इसके पूर्व अनुभव इसे ये आभास ही नहीं होने देते कि ये रस्सी इतनी मजबूत नहीं कि उसे रोक सके l "
यह सुनकर गुरु बोले --- " मनुष्य भी इसी हाथी की तरह है l अपनी आत्मशक्ति को पहचानता नहीं और अपनी कमजोरियों के कारण दीन - हीन स्थिति में पड़ा रहता है l
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