मनुष्य जैसी परिस्थितियों में लम्बे समय तक रहता है , उसको वैसे ही रहने की आदत बन जाती है l दीर्घकाल तक जो जातियाँ या समाज आधीनता में रहे , वे शारीरिक रूप से स्वतंत्र भी हो जाएँ तब भी वे मानसिक रूप से पराधीन बनी ही रहती हैं l अपने भीतर की कमजोरियों के कारण , वर्षों तक स्वाभिमान के कुचले जाने के कारण और मुख्य रूप से संगठित न होने के कारण वे दबी - कुचली स्थिति में रहने को विवश होते हैं l ये लोग जब जागरूक होंगे , अपने भीतर की शक्ति को पहचानेगें , अपने स्वाभिमान को जगायेंगे , तभी इनकी स्थिति में सुधार होगा l
इसका दूसरा पक्ष देखें तो वे जातियाँ जिन्होंने युगों तक दूसरे समाज को , जातियों को अपने आधीन रखा , उनकी सब पर हुकूमत जमाने की आदत जाती नहीं है l वे अपने आधीन रहे पक्ष को हमेशा अपने से हीन व निम्न स्थिति में ही देखना चाहते हैं l उनकी ख़ुशी , उनकी तरक्की उनसे सहन नहीं होती l अपने समान स्तर पर उन्हें बैठे हुए देखना उनकी बर्दाश्त के बाहर होता है l इसी लिए वे अपनी सामर्थ्य का उपयोग उनको उठाने के लिए नहीं , उन्हें उसी हीनता की स्थिति में बनाये रखने के लिए करते हैं l
संसार में जो भी समस्याएं हैं , अशांति है , पीड़ा है , वह धनवानों , बुद्धिमान और स्वयं को श्रेष्ठ समझने वाले लोगों के अहंकार के कारण ही है l जब लोग समझेंगें कि इस धरती पर चैन से जीने का हक सबको है , तभी शांति होगी l
इसका दूसरा पक्ष देखें तो वे जातियाँ जिन्होंने युगों तक दूसरे समाज को , जातियों को अपने आधीन रखा , उनकी सब पर हुकूमत जमाने की आदत जाती नहीं है l वे अपने आधीन रहे पक्ष को हमेशा अपने से हीन व निम्न स्थिति में ही देखना चाहते हैं l उनकी ख़ुशी , उनकी तरक्की उनसे सहन नहीं होती l अपने समान स्तर पर उन्हें बैठे हुए देखना उनकी बर्दाश्त के बाहर होता है l इसी लिए वे अपनी सामर्थ्य का उपयोग उनको उठाने के लिए नहीं , उन्हें उसी हीनता की स्थिति में बनाये रखने के लिए करते हैं l
संसार में जो भी समस्याएं हैं , अशांति है , पीड़ा है , वह धनवानों , बुद्धिमान और स्वयं को श्रेष्ठ समझने वाले लोगों के अहंकार के कारण ही है l जब लोग समझेंगें कि इस धरती पर चैन से जीने का हक सबको है , तभी शांति होगी l
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