जिस प्रकार सूखे बांस आपस की रगड़ से ही जलकर भस्म हो जाते हैं , उसी प्रकार अहंकारी व्यक्ति आपस में टकराते हैं और कलह की अग्नि में जल मरते हैं l ---- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
अहंकार ज्ञान के सारे द्वार बंद कर देता है l अहंकार यदि धन का हो तो व्यक्ति धन के माध्यम से सब कुछ हथियाना चाहता है l जिनके पास असीम धन - सम्पदा है , वे उस धन के बल पर संसार पर शासन करना चाहते हैं l समय के साथ शासन का तरीका भी बदल जाता है , अब वे लोगों के मन में भय पैदा कर के , उन्हें मानसिक रूप से कमजोर बना कर , उनके दैनिक जीवन पर भी नियंत्रण करना चाहते हैं l महत्वाकांक्षा यहीं नहीं रूकती l वे धन के बल पर प्रकृति को जीतना चाहते हैं l इसी महत्वाकांक्षा के कारण अनेक सभ्यताएँ धूल में मिल गईं l लेकिन अहंकार के कारण व्यक्ति इनसे सबक नहीं सीखता l
विज्ञान की आधुनिक तकनीकों , आविष्कारों से ही आज नियम - संयम से रहने वाला व्यक्ति भी स्वस्थ नहीं है l अधिक धन कमाने का लालच संसार को नई - नई बीमारियाँ देता है , फिर उनके इलाज देता है , फिर नई बीमारी ! यह चक्र कभी ख़त्म नहीं होता l
यह चक्र तभी रुकेगा जब व्यक्ति जागरूक होगा , आधुनिक सुविधाओं को छोड़कर एक सरल जीवन जियेगा , प्रकृति के साथ तालमेल रखेगा , संवेदनशील बनेगा l
अभी लोग क्रूरता और छल - छद्म के आधार पर संसार को अपने ढंग से चलाना चाहते हैं , लेकिन यदि वे संवेदनशील बन जाएँ , ' जियो और जीने दो ' के सिद्धांत पर चलें , अपना स्वार्थ छोड़ दें तो बिना किसी प्रयास के संसार उनके क़दमों में झुकेगा l
अहंकार ज्ञान के सारे द्वार बंद कर देता है l अहंकार यदि धन का हो तो व्यक्ति धन के माध्यम से सब कुछ हथियाना चाहता है l जिनके पास असीम धन - सम्पदा है , वे उस धन के बल पर संसार पर शासन करना चाहते हैं l समय के साथ शासन का तरीका भी बदल जाता है , अब वे लोगों के मन में भय पैदा कर के , उन्हें मानसिक रूप से कमजोर बना कर , उनके दैनिक जीवन पर भी नियंत्रण करना चाहते हैं l महत्वाकांक्षा यहीं नहीं रूकती l वे धन के बल पर प्रकृति को जीतना चाहते हैं l इसी महत्वाकांक्षा के कारण अनेक सभ्यताएँ धूल में मिल गईं l लेकिन अहंकार के कारण व्यक्ति इनसे सबक नहीं सीखता l
विज्ञान की आधुनिक तकनीकों , आविष्कारों से ही आज नियम - संयम से रहने वाला व्यक्ति भी स्वस्थ नहीं है l अधिक धन कमाने का लालच संसार को नई - नई बीमारियाँ देता है , फिर उनके इलाज देता है , फिर नई बीमारी ! यह चक्र कभी ख़त्म नहीं होता l
यह चक्र तभी रुकेगा जब व्यक्ति जागरूक होगा , आधुनिक सुविधाओं को छोड़कर एक सरल जीवन जियेगा , प्रकृति के साथ तालमेल रखेगा , संवेदनशील बनेगा l
अभी लोग क्रूरता और छल - छद्म के आधार पर संसार को अपने ढंग से चलाना चाहते हैं , लेकिन यदि वे संवेदनशील बन जाएँ , ' जियो और जीने दो ' के सिद्धांत पर चलें , अपना स्वार्थ छोड़ दें तो बिना किसी प्रयास के संसार उनके क़दमों में झुकेगा l
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