पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहा करते थे -- मनुष्य वही है जो संवेदनशील हो , दूसरोँ की पीड़ा जिसे व्यथित करती है l वे कहते थे हर साधन - संपन्न व्यक्ति को अपने आप से पूछना चाहिए , जब देश में , दुनिया में करोड़ों बच्चे भूखे हैं , लेकिन हमारे बच्चों को अच्छा भोजन , अच्छे कपड़े और अच्छा घर प्राप्त है तो अन्य बच्चों को क्यों नहीं ?
आचार्य श्री ने लिखा है ---जन्म लेने के बाद भी मनुष्य जीवन को प्राप्त नहीं करता l वह जन्मते ही स्वार्थ सीखता है और फिर बड़ा होने के साथ - साथ इसी में पारंगत और प्रवीण हो जाता है l अपने स्वार्थ व अहं को पूरा करने के लिए चतुराई व चालाकी का सहारा लेता है l जन्म लेने के बाद मनुष्यत्व को कैसे प्राप्त करें , यही समझाने के लिए आचार्य श्री ने विशाल साहित्य रचा और इसे जन - जन तक पहुँचाने के लिए अखण्ड ज्योति का आविर्भाव हुआ l
आचार्य श्री लिखते हैं ---' हमें स्वाधीनता मिले कितने ही दशक हो गए , पर द्वेष , दुर्भाव से हम आज तक स्वाधीन नहीं हो सके l हम मनुष्य के प्रति विश्वास और सद्भाव को खो चुके हैं l हम अपने ही समान पड़ोसी को मनुष्य रूप में देखने से पहले उसे कुल , बिरादरी , धर्म व सम्प्रदाय के हिस्सों के रूप में देखते हैं l यह मनुष्य की संकीर्णता ही है कि कुल , जाति , धर्म , सम्प्रदाय के कारण ही एक इनसान दूसरे इनसान से घृणा करने लगता है , इसी प्रवृति का परिणाम हैं दंगे , जो यदा - कदा पूरे देश और देशवासियों को दागदार बनाते हैं l '
आचार्य श्री ने बार - बार यही समझाया है कि हमें जन्म भले ही मनुष्य शरीर के रूप में मिला है , परन्तु जीवन का आधार आत्मचेतना है l चेतना जाग्रत हो , हम सब एक माला के मोती हैं , सच्चे इनसान बने l
आचार्य श्री ने लिखा है ---जन्म लेने के बाद भी मनुष्य जीवन को प्राप्त नहीं करता l वह जन्मते ही स्वार्थ सीखता है और फिर बड़ा होने के साथ - साथ इसी में पारंगत और प्रवीण हो जाता है l अपने स्वार्थ व अहं को पूरा करने के लिए चतुराई व चालाकी का सहारा लेता है l जन्म लेने के बाद मनुष्यत्व को कैसे प्राप्त करें , यही समझाने के लिए आचार्य श्री ने विशाल साहित्य रचा और इसे जन - जन तक पहुँचाने के लिए अखण्ड ज्योति का आविर्भाव हुआ l
आचार्य श्री लिखते हैं ---' हमें स्वाधीनता मिले कितने ही दशक हो गए , पर द्वेष , दुर्भाव से हम आज तक स्वाधीन नहीं हो सके l हम मनुष्य के प्रति विश्वास और सद्भाव को खो चुके हैं l हम अपने ही समान पड़ोसी को मनुष्य रूप में देखने से पहले उसे कुल , बिरादरी , धर्म व सम्प्रदाय के हिस्सों के रूप में देखते हैं l यह मनुष्य की संकीर्णता ही है कि कुल , जाति , धर्म , सम्प्रदाय के कारण ही एक इनसान दूसरे इनसान से घृणा करने लगता है , इसी प्रवृति का परिणाम हैं दंगे , जो यदा - कदा पूरे देश और देशवासियों को दागदार बनाते हैं l '
आचार्य श्री ने बार - बार यही समझाया है कि हमें जन्म भले ही मनुष्य शरीर के रूप में मिला है , परन्तु जीवन का आधार आत्मचेतना है l चेतना जाग्रत हो , हम सब एक माला के मोती हैं , सच्चे इनसान बने l
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