कहते हैं किसी भी बात की अति अच्छी नहीं होती , इसे प्रकृति भी बर्दाश्त नहीं करती , अपने तरीके से अपना क्रोध व्यक्त करती है l प्रत्येक देश में कोई - न - कोई सामाजिक बुराई है , यहाँ जाति - प्रथा सदियों से चली आ रही है l एक वर्ग स्वयं को श्रेष्ठ समझता है , यह ठीक है , कुछ गुण , कुछ विशेषताएं अवश्य हैं , जिसके आधार पर वे श्रेष्ठ हैं लेकिन दूसरे वर्ग को चैन से जीने न देना एक ऐसी बुराई है जो प्रकृति को सहन नहीं होती l ईश्वर ने अवतार लेकर अपने आचरण से सिखाया कि जातिगत भेदभाव , ऊंच - नीच की भावना को त्याग दो l भगवान श्रीराम ने शबरी के जूठे बेर खाये , निषादराज से मित्रता की l भगवान श्रीकृष्ण ने दुर्योधन के महल - मेवा को त्यागा और विदुर जी के यहाँ रूखी - सुखी खा कर प्रसन्न हुए l लोग भगवान की जय - जयकार तो करते हैं लेकिन उनके आदर्श को स्वीकार नहीं करते l हमारी इसी बुराई की वजह से हम सदियों तक गुलाम रहे l लेकिन हम सुधरे नहीं , इसलिए प्रकृति के प्रकोप के रूप में यह महामारी आ गई l इस कोरोना के माध्यम से प्रकृति हमें संदेश देती है कि सब बराबर हैं , कोई ऊंच - नीच नहीं , कोई भेदभाव नहीं है l चाहे कोई अमीर हो या गरीब , नेता हो या नौकर , उच्च जाति का हो या निम्न जाति का , जो भी इस बीमारी से ग्रसित हो गया वह समाज से दूर हो गया , सब की एक जैसी दशा ------ इस महामारी का मूल कारण जो भी हो , इसका माध्यम कोई भी हो , इससे कोई फरक नहीं पड़ता , हम इसकी गहराई में छिपे प्रकृति के संदेश को समझें और सारे भेदभाव भूलकर ' जियो और जीने दो ' की नीति पर चलें , आपस में प्रेम चाहे न हो पर परस्पर वैर भाव भी न हो l कहते हैं ' जब जागो , तब सवेरा ' l हम अपनी गलतियों को सुधार लें , इसी में सबका कल्याण है l
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