महाभारत का प्रसंग है --- युधिष्ठिर जुएँ में महारानी द्रोपदी को हार गए l तब दुर्योधन ने दु:शासन को द्रोपदी के चीर - हरण करने की आज्ञा दी l दु; शासन द्रोपदी को उसके बाल पकड़ कर घसीट कर ला रहा था l द्रोपदी क्रंदन कर रही थीं और भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण कर रही थीं l उधर भगवान श्रीकृष्ण अपने महल में पलंग पर लेटे थे और रुक्मणी जी पंखा झल रहीं थीं l एकदम अचानक भगवान ने रुक्मणी जी का हाथ , जिसमें वे पंखा पकड़े थीं , दूर किया और पीताम्बर पहने ही तेजी से दौड़े , दरवाजे तक गए , फिर धीमे से वापस आ गए l रुक्मणी जी ने पूछा --- ' भगवन ! आखिर बात क्या है ? आप ऐसे तेजी से दौड़े फिर वापस आ गए l ' तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा --- ' देखो ! हस्तिनापुर में पांचाली की लाज पर संकट है , उसने मुझे बुलाया तो मैं दौड़ा , लेकिन देखो , अब वह अब पितामह से अपनी रक्षा के लिए कह रही है , अब गुरु द्रोण से , अब धृतराष्ट्र से , अब देखो वह किस तरह अपने पाँचों पतियों से अपनी रक्षा की गुहार लगा रही है l ' रुक्मणी जी ने कहा --- ' आप अवश्य जाएँ , द्रोपदी की रक्षा करें l " भगवान ने कहा --- ' पांचाली मुझे नहीं बुला रही , वो अपने सांसारिक रिश्तों से ही मदद मांग रही है , इसलिए मैं वापस लौट आया l " अंत में द्रोपदी सब से अपनी लाज बचाने के लिए मदद मांगते - मांगते थक गई तब उसने भगवान को पुकारा --- ' हे कृष्ण ! मेरी रक्षा करो , मैं तुम्हारी शरण में हूँ l " तब भगवान दौड़ते आए , वस्त्रावतार धारण कर लिया l दु:शासन का दस हजार हाथियों का बल हार गया l ' द्रोपदी की लाज राखि , तुम बढ़ायो चीर l
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