28 September 2020

WISDOM ---- सच्चे हृदय से ईश्वर को पुकारो , वे अवश्य आते हैं

       महाभारत  का  प्रसंग  है  ---  युधिष्ठिर  जुएँ   में  महारानी  द्रोपदी  को  हार  गए  l   तब  दुर्योधन  ने    दु:शासन   को  द्रोपदी  के   चीर  - हरण  करने  की  आज्ञा  दी  l  दु; शासन   द्रोपदी  को  उसके  बाल  पकड़  कर  घसीट  कर  ला  रहा  था  l  द्रोपदी  क्रंदन  कर  रही  थीं  और  भगवान   श्रीकृष्ण  का  स्मरण  कर  रही  थीं  l   उधर  भगवान  श्रीकृष्ण  अपने  महल  में  पलंग  पर  लेटे   थे   और  रुक्मणी  जी  पंखा  झल  रहीं  थीं  l  एकदम  अचानक  भगवान  ने  रुक्मणी  जी  का  हाथ  , जिसमें  वे  पंखा  पकड़े   थीं  ,  दूर किया   और पीताम्बर  पहने  ही  तेजी   से दौड़े  ,  दरवाजे  तक  गए ,  फिर  धीमे  से  वापस  आ  गए  l   रुक्मणी  जी  ने  पूछा --- ' भगवन  !  आखिर  बात  क्या  है  ?  आप  ऐसे  तेजी  से  दौड़े  फिर  वापस  आ  गए  l '  तब  भगवान   श्रीकृष्ण  ने  कहा  --- '  देखो  !  हस्तिनापुर  में  पांचाली  की  लाज  पर  संकट  है  ,  उसने  मुझे  बुलाया   तो  मैं  दौड़ा  ,  लेकिन  देखो ,  अब  वह   अब  पितामह  से  अपनी  रक्षा  के  लिए  कह  रही  है  ,   अब   गुरु  द्रोण   से  ,  अब  धृतराष्ट्र  से  ,  अब  देखो   वह किस  तरह  अपने  पाँचों  पतियों  से  अपनी  रक्षा  की  गुहार  लगा   रही है  l '  रुक्मणी  जी  ने  कहा --- ' आप  अवश्य  जाएँ ,  द्रोपदी  की  रक्षा  करें  l "  भगवान  ने  कहा  ---   ' पांचाली  मुझे  नहीं  बुला  रही  ,  वो  अपने  सांसारिक  रिश्तों  से  ही  मदद  मांग  रही  है  ,  इसलिए  मैं  वापस  लौट  आया  l  "    अंत  में  द्रोपदी  सब  से   अपनी  लाज   बचाने  के  लिए  मदद  मांगते - मांगते  थक  गई   तब  उसने  भगवान   को  पुकारा  --- ' हे  कृष्ण  !  मेरी  रक्षा  करो ,  मैं  तुम्हारी  शरण  में  हूँ  l "  तब  भगवान  दौड़ते  आए ,  वस्त्रावतार  धारण  कर  लिया  l  दु:शासन   का दस  हजार  हाथियों  का  बल  हार  गया  l  ' द्रोपदी   की लाज  राखि ,  तुम  बढ़ायो  चीर  l 

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