भौतिक प्रगति के साथ चेतना का स्तर भी उच्च हो l एक कथा है --- देवर्षि नारद सबका सुख - दुःख जानने के लिए संसार में भ्रमण करते हैं l उनकी इच्छा हुई कि पृथ्वी पर जो प्राणी घिनौना , नारकीय जीवन जीवन जी रहे हैं , उन्हें स्वर्ग पहुंचा दें l इस क्रम में उन्होंने सबसे पहले कीचड़ में लोटते , गंदगी चाटते सुअर को देखा , उन्हें बड़ी दया आई l नारद जी ने उससे कहा --- ' ऐसा जीवन किस काम का ! चलो हम तुम्हे स्वर्ग पहुंचा देते हैं l ' नारद जी की बात सुनकर वाराह तैयार हो गया l रास्ते में उसने पूछ ही लिया ---- " वहां खाने , भोगने और लोटने के क्या साधन हैं l " नारद जी वहां के सब सुख बताने लगे , वह बीच में ही पूछ बैठा --- " महाराज ! वहां खाने के लिए गंदगी , लोटने के लिए कीचड़ और साथ में क्रीड़ा - कल्लोल हेतु वाराह कुल वहां है या नहीं l ' महर्षि ने कहा ---- " मूर्ख ! इन चीजों की वहां क्या जरुरत है l वहां तो देवताओं के अनुरूप स्वर्ग का वातावरण है l " वाराह ने आगे बढ़ने से मना कर दिया और कहा -- 'जहाँ ये सब नहीं , वहां जाकर मैं क्या करूँगा l " देवर्षि ने अपना सिर पीट लिया , वे समझ गए कि जब तक आंतरिक स्तर उच्च नहीं है , प्राणी को उच्च स्थिति में पहुँचाना व्यर्थ है l
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