पुराणों में एक कथा है --- एक राजा था महिषध्वज , बहुत अहंकारी था l यह अहंकार उसे अपने पिता व दादा से विरासत में ही मिला था l वह कहता था कि मैंने ही गरीबों को धन दिया , भूखों का पेट भरा , मेरे कारण न जाने कितने घरों में चूल्हा जलता है l मैं ही सबका आश्रयदाता हूँ इसलिए लोग मुझे भगवान के समान पूजते हैं l जबकि सच यह था कि उसके हृदय में संवेदना नहीं थी l उसके विरुद्ध कोई दो शब्द भी बोलता , झुककर बात नहीं करता तो वह उसे दण्डित करता l औरों की पीड़ा उसे पीड़ित नहीं करती , उसे तो केवल अपने सुख - दुःख की परवाह थी l इसलिए लोग अपनी जान बचाने के लिए उसकी प्रशंसा कर दिया करते थे जिसे महिषध्वज सच मान लेता था l अहंकार में आधिपत्य की चाहत होती है इसलिए वह आसपास के राज्यों पर भी अपना अधिकार कर उन्हें अपने आतंक के नीचे रखना चाहता था l संयोग से एक संत धृतव्रत उस रियासत से होकर गुजर रहे थे , उनकी भेंट महिषध्वज से हुई l इन संत के पिता भी एक रियासत के राजा थे लेकिन संत ने अपनी रियासत अपने भाइयों को सौंप दी और स्वयं संत बन गए l महिषध्वज के कहने पर वे कुछ दिन उसकी रियासत में व्यतीत करने को तैयार हो गए l संत प्रात: उठकर बीमार लोगों की सेवा करते , असहायों की सहायता करते , दीन - दुःखियों का दर्द बांटते l उनके इस आत्मीय व्यवहार से राजा के आतंक से पीड़ित जनता में नई ऊर्जा का संचार हुआ l अब तो संत के द्वार विशाल जनसमूह अपने कष्टों के निवारण का मार्ग पूछने और जीवन के लिए सही मार्गदर्शन पाने के लिए इकट्ठा होने लगा l संत धृतव्रत की बढ़ती लोकप्रियता से राजा को बड़ी असुरक्षा हुई l उन्होंने संत से कह दिया कि प्रजा उसी पर आश्रित है और उसे भगवान की तरह पूजती है l संत ने कहा --- राजन ! तुम्हारे मन में भ्रम है कि यहाँ आता विशाल जनसमूह तुम्हारे साम्राज्य को चुनौती दे रहा है l तुम्हे यह विचारने की आवश्यकता है कि तुम्हारे राजा होते हुए ये सारा जनसमूह मेरे द्वार पर किस आशा के साथ खड़ा है ? न मेरे पास कोई धन है , न कोई अधिकार , फिर इन्हे यहाँ आने के लिए कौन सा कारण प्रेरित कर रहा है ? राजा महिषध्वज के पास इसका कोई उत्तर न था l संत धृतव्रत बोले ---- " मानवीय सम्बन्ध प्रेम के आधार पर खड़े होते हैं l यदि तुम यह चाहते हो कि लोग तुम्हे हृदय से चाहें तो उनके कष्ट के निवारण के लिए हृदय से प्रयास करना सीखो l यदि संबंधों का आधार स्नेह ,प्रेम और िश्वास हो तो तुम्हारी प्रजा भी तुम्हारे प्रति श्रद्धा और आदर का भाव रखने लगेगी l संत के विचारों से राजा बहुत प्रभावित हुआ , उसका आचरण बदलने लगा , अब उसके राज्य में आतंक के स्थान पर संवेदना का वातावरण था l अब प्रजा के हृदय में भी उसके लिए आदर भाव था l
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