हमारे महाकाव्य हमें जीवन जीने की कला सिखाते हैं , उचित -अनुचित और अच्छे - बुरे का भान कराते हैं l इनके अध्ययन - मनन से हमें अपने जीवन में सही दिशा चुनने की समझ आती है l ---- रावण का पुत्र था --मेघनाद l उसकी पत्नी का नाम था सुलोचना l राक्षस कुल में रहकर भी उसके जैसी महान पतिव्रता का होना एक आश्चर्य था l सुलोचना ने जीवन भर पतिव्रत धर्म की साधना कर मेघनाद को वह बल प्रदान किया था कि उसके आगे देवता भी नहीं टिकते थे l उसने स्वर्ग के राजा इंद्र को पराजित किया और इंद्रजीत कहलाया , जैसे मेघ गरजते हैं वैसी ही उसकी गर्जना थी , इसलिए वह मेघनाद था l राम - रावण के युद्ध में जब मेघनाद सेनापति बना , तब भगवान राम ने उससे युद्ध करने के लिए लक्ष्मण जी को भेजा l लक्ष्मण जी महारथी थे l मेघनाद ने शक्ति का प्रयोग किया , इस कारण वे मूर्छित हो गए l लेकिन श्री हनुमान जी द्वारा लाई गई संजीवनी बूटी और उनकी पत्नी उर्मिला के पतिव्रत धर्म की ताकत से लक्ष्मण जी को जीवन दान मिला l लक्ष्मण जी की पत्नी उर्मिला महान पतिव्रता थी , उसने चौदह वर्ष तक अपने पति की अनुपस्थिति में पलक ऊपर उठाकर किसी पुरुष के दर्शन तक नहीं किए और राज्य - भोग , आभूषण , स्वादयुक्त भोजन आदि का परित्याग इसलिए कर दिया था , क्योंकि उनके पति वनवासी थे l जब लक्ष्मण जी स्वस्थ होकर पुन: मेघनाद से युद्ध के लिए जाने लगे तब भगवान राम ने उन्हें चेताया कि ध्यान रखना मेघनाद का सिर जमीन पर न गिरने पाए l ------- लक्ष्मण जी और मेघनाद में भयंकर युद्ध हुआ और अंत में मेघनाद पराजित हुआ और मारा गया l यह पूछने पर कि लक्ष्मण और मेघनाद दोनों ही महारथी थे , दोनों की पत्नी महान पतिव्रता थीं , जिनके सतीत्व की शक्ति उनके पति की रक्षा करती थी l फिर ऐसा क्या हुआ कि मेघनाद पराजित हुआ ? भगवान ने कहा --- मेघनाद ने एक ऐसे व्यक्ति का साथ दिया जिसने परस्त्री का अपहरण किया , अत्याचारी व अन्यायी था l ऐसे व्यक्ति का साथ देकर उसने स्वयं ही अपनी शक्ति को कम कर लिया और पराजित हुआ l इस प्रसंग से हमें शिक्षा मिलती है कि हम होश में रहें , अत्याचारी और अन्यायी का साथ देकर मनुष्य स्वयं अपने पतन की राह चुनता है l
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