20 November 2020

WISDOM ------ मेघनाद क्यों हारा ?

   हमारे  महाकाव्य  हमें  जीवन  जीने  की  कला  सिखाते  हैं ,  उचित -अनुचित  और  अच्छे - बुरे  का  भान  कराते  हैं  l   इनके  अध्ययन - मनन   से   हमें  अपने  जीवन  में  सही  दिशा  चुनने  की  समझ  आती  है  l ---- रावण  का  पुत्र  था  --मेघनाद   l   उसकी  पत्नी  का  नाम  था  सुलोचना  l   राक्षस कुल   में रहकर  भी  उसके  जैसी  महान  पतिव्रता   का  होना  एक  आश्चर्य  था  l   सुलोचना  ने  जीवन  भर  पतिव्रत  धर्म  की  साधना  कर    मेघनाद  को  वह  बल  प्रदान  किया  था   कि   उसके  आगे  देवता  भी  नहीं  टिकते  थे  l   उसने  स्वर्ग  के  राजा  इंद्र  को  पराजित  किया   और  इंद्रजीत  कहलाया  ,   जैसे  मेघ  गरजते  हैं  वैसी  ही  उसकी  गर्जना  थी ,  इसलिए  वह  मेघनाद  था  l   राम - रावण  के  युद्ध  में  जब  मेघनाद  सेनापति  बना  , तब  भगवान  राम  ने  उससे  युद्ध  करने  के  लिए  लक्ष्मण जी  को  भेजा  l  लक्ष्मण जी  महारथी  थे  l   मेघनाद  ने  शक्ति  का  प्रयोग  किया  ,   इस कारण  वे  मूर्छित  हो  गए  l   लेकिन  श्री  हनुमान जी  द्वारा  लाई   गई  संजीवनी  बूटी  और  उनकी  पत्नी  उर्मिला  के  पतिव्रत  धर्म  की  ताकत  से  लक्ष्मण  जी  को  जीवन दान  मिला  l  लक्ष्मण जी   की पत्नी  उर्मिला  महान  पतिव्रता  थी  ,  उसने  चौदह  वर्ष  तक  अपने  पति  की  अनुपस्थिति  में  पलक   ऊपर  उठाकर  किसी  पुरुष  के  दर्शन  तक  नहीं  किए  और  राज्य - भोग , आभूषण , स्वादयुक्त  भोजन    आदि   का परित्याग  इसलिए  कर  दिया   था  ,   क्योंकि उनके  पति  वनवासी  थे   l    जब  लक्ष्मण जी  स्वस्थ  होकर   पुन:  मेघनाद  से  युद्ध  के  लिए  जाने  लगे   तब  भगवान  राम  ने  उन्हें  चेताया  कि   ध्यान  रखना   मेघनाद  का  सिर   जमीन  पर  न  गिरने  पाए  l ------- लक्ष्मण जी  और  मेघनाद  में  भयंकर  युद्ध  हुआ   और  अंत  में  मेघनाद  पराजित  हुआ  और  मारा  गया  l      यह  पूछने  पर  कि   लक्ष्मण  और  मेघनाद  दोनों  ही  महारथी  थे  ,  दोनों  की  पत्नी  महान  पतिव्रता  थीं ,  जिनके  सतीत्व  की  शक्ति  उनके  पति  की  रक्षा  करती  थी  l   फिर  ऐसा  क्या  हुआ  कि   मेघनाद  पराजित  हुआ  ?     भगवान  ने  कहा  --- मेघनाद  ने  एक  ऐसे  व्यक्ति  का  साथ  दिया  जिसने  परस्त्री  का  अपहरण  किया  ,   अत्याचारी   व अन्यायी  था  l   ऐसे  व्यक्ति  का  साथ  देकर   उसने  स्वयं  ही  अपनी  शक्ति  को  कम   कर  लिया   और  पराजित   हुआ  l   इस  प्रसंग   से हमें  शिक्षा  मिलती  है  कि   हम  होश  में  रहें ,  अत्याचारी  और  अन्यायी  का  साथ  देकर  मनुष्य  स्वयं  अपने  पतन  की  राह  चुनता  है  l 

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