7 December 2020

WISDOM------- दुर्योधन की मेवा त्यागी , साग विदुर घर खायो

       विदुर जी  ने  जब  देखा    धृतराष्ट्र    और  दुर्योधन  अनीति  करना  नहीं  छोड़ते  ,  तो  सोचा  कि   इनका  अन्न   और  इनका  सान्निध्य   मेरी  वृत्तियों  को  भी  प्रभावित  करेगा  ,  इसलिए  वे  नगर  के  बाहर   वन  में  कुटी  बनाकर   पत्नी  सहित  रहने  लगे   l   जंगल  से  भाजी  तोड़  लेते      ,  उबाल   कर खा  लेते     और  अपना  समय  सत्कार्यों  और  प्रभु  - स्मरण  में  लगाते  l   श्रीकृष्ण  जब  संधि  दूत  बनकर  गए   और  वार्ता  असफल  हो  गई  ,  तो  वे  धृतराष्ट्र , दुर्योधन, द्रोणाचार्य  आदि  सबका  आमंत्रण  अस्वीकार  कर  के   विदुर  जी  के  यहाँ  जा  पहुंचे   और  वहां  भोजन  करने  की  इच्छा  प्रकट  की  l   विदुर  जी  को  यह  संकोच  हुआ  कि  प्रभु  को  शक - भाजी  परोसने  पड़ेंगे  ?  पूछा  , ' आप  भूखे  भी  थे  ,  भोजन  का  समय  भी  था   और   उनका आग्रह  भी  ,  फिर  आपने  भोजन  क्यों  नहीं  किया   ? "  भगवान  बोले  ---- " चाचाजी  !  जिस   भोजन  को  करना   आपने  उचित  नहीं  समझा  ,  जो  आपके  गले  नहीं  उतरा  ,  वह  मुझे  भी  कैसे  रुचता   ?  जिसमें  आपने  स्वाद  पाया  ,  उसमे  मुझे  स्वाद  न  मिलेगा  ,  ऐसा  आप  कैसे  सोचते  हैं   ?  "    विदुर जी  भाव  - विह्ल   हो  गए   l   प्रभु   तो   प्रेम  और  भावना  के  भूखे  हैं   l                                                                             

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