स्वार्थ और लालच व्यक्ति को किस हद तक गिरा देते हैं , इस सत्य को बताने वाली एक कथा है ---- प्राचीन काल की बात है , जब छोटे - छोटे राज्य हुआ करते थे , कहीं सामंत , कहीं जागीरदार तो कहीं राजा हुआ करते थे l उनके पास अपार सम्पदा थी l राज्य की स्थिति बहुत उन्नत थी, प्रजा भी बहुत सुखी थी l सब दिन एक से नहीं होते l कोई व्यक्ति अच्छा होता है लेकिन बुरी संगत उसे बहुत जल्दी बुरा बना देती है l पड़ोसी राज्य का राजा और उसके सामंत आदि बहुत लालची थे , चाहते थे कि उनकी सत्ता हरदम बनी रहे l जब तक वे जीवित हैं गद्दी पर बने रहें और दूर - दूर तक उनकी हुकूमत चले l इस मंतव्य से उन्होंने दूर दूर से भी सब राजाओं को बुलवाया और उन्हें भी इसका लालच दिया l बुराई की राह बड़ी सरल होती है , सभी उनके लालच में आ गए l लेकिन यह कार्य हो कैसे ? इसमें सबसे बड़ी बाधा थी --- जागरूक प्रजा l यह विचार किया गया कि शिक्षा व्यवस्था को ही चौपट कर दो , जिससे जनता जागरूक न होने पाए l गुरुकुलों को मदद देनी बंद कर दी ------- l अब दूसरी बाधा थी कि यदि लोग स्वस्थ हैं तो वे कहीं से भी ज्ञान प्राप्त कर लेंगे और विरोध करेंगे l इसलिए ऐसे तरीके अपनाये कि लोगों को पता भी न चले कि क्या कारण है और वे बीमार रहें l जो स्वस्थ हैं वे भी बीमारी से भयभीत रहें l इन सबका परिणाम घातक हुआ l बुराई ने अपनी जड़ें जमा लीं l कहते हैं जैसे धरती पर राज्य व सरकारें हैं वैसे ही हिमालय पर ऋषियों , आचार्यों की संसद है l जब धरती पर पाप व अनाचार बढ़ जाता है तब बागडोर वे अपने हाथ में ले लेते हैं जिससे संसार में पुन: सुख - शांति कायम हो l
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