2 January 2021

WISDOM ----- सब कुछ पाकर भी मन से ईर्ष्या - द्वेष नहीं जाता

      स्वर्ग  का  राज्य  पाकर  भी  देवराज  इंद्र  के  मन  से  ईर्ष्या , द्वेष  नहीं  गया  , तब  सामान्य  मनुष्य  की  क्या  कहें  ?  पुराण  की  एक  कथा  है -----  जब  भगवान  वामन  ने  राजा  बलि  से   पृथ्वी  और  स्वर्ग  का  राज्य  छीनकर  इंद्र  को  दे  दिया  l   राज्य  पाकर  इंद्र  फिर  अहंकार  से  भर  गए   l   उनके  मन  में  अभी  भी  बलि  के  लिए  द्वेष  था   l   वे  जब - तब  बलि  को  ढूंढते  रहते  थे  ताकि   वे  उनका  उपहास  कर  सकें  l   इसी  हेतु  वे  ब्रह्माजी  के  पास  पहुंचे  और  बोले  --- " हे  पितामह   ! मैं  बहुत  दिनों  से  दानवेन्द्र  बलि  को  ढूंढ़   रहा  हूँ  l   आप  मुझे  उनका  ठिकाना  बताएं  l  " ब्रह्मा जी  देवेंद्र  के  मन में क्या  है  समझ  गए  , उन्होंने  कहा ---" देवराज !  तुम्हारा  उद्देश्य  ठीक  नहीं  है  l   राजा  बलि  इस  समय  वन  में , बस्तियों  में  विभिन्न  पशुओं  का  रूप  धर   कर  भ्रमण  कर  रहे  हैं  l "  इंद्र  ने  फिर  पूछा  ---- " हे  पितामह  !  क्या  मैं  उनका  अपने  वज्र  के  प्रहार  से  वध  कर  सकता  हूँ  l  "  इस  पर  ब्रह्माजी   हँसे   और  बोले  ---- "इंद्र  ! यह  गलती  भूल  कर  भी  न  करना  l   राजा  बलि  भगवान  नारायण  के  भक्त  हैं  और  सतत   उनके  संरक्षण  में  हैं  l   उनका  अहित  करने  की  चाह   में  तुम  अपना  अहित  अवश्य  कर  लोगे  l  "  अब  इन्द्र  ने   देवताओं  के  राजा   के  वैभव  को  प्रदर्शित  करने  वाला  वेश  धारण  किया  और  ऐरावत  पर  चढ़कर  बलि  की   खोज  में  निकल  पड़े  l   उन्होंने  वन  में  एक  गधे  को  देखा  ,  उसके  लक्षणों  को  देखकर  उन्होंने   अनुमान  लगा  लिया  कि   यही  राजा  बलि  हैं  l  उन्होंने  कहा  -- " दानवराज  !  तुम्हे  अपनी  दुर्दशा  पर  दुःख  नहीं  होता  l  तुम्हारे  पास  न  राज्य  है  न  ऐश्वर्य  l "   इस  पर  बलि  ने  कहा ---- ' देवेंद्र  ! मुझे  ज्ञात  है  तुम  यहाँ  मेरा  उपहास  करने  आये  हो  l   तुम  जीवन  के  रहस्य  को  नहीं  जानते  l  जीवन  में  कुछ  भी  स्थिर  नहीं  है  , काल  सभी  को  विनष्ट  कर  देता  है  l  तुम  जिस  ऐश्वर्य  और  वैभव  का  प्रदर्शन  करने  आये  हो  ,  वह  कल  तक  मेरे  पास  था  l   संभव  है  वह  कल  तुम्हे  छोड़कर  कहीं  और  चला  जाये  l  मैं  चाहूँ   तो  अभी  भयानक  रूप  धारण  कर  तुमको  वज्र  और  ऐरावत  समेत  भूमि  पर  गिरा  सकता  हूँ  l लेकिन  कोई  काल  को  लाँघ  नहीं  सकता  l  यह  समय  सह  लेने  का  है  , पराक्रम  दिखाने   का  नहीं  l  हम  सब  काल  के  आधीन  है  l "  राजा  बलि  की  इन  बातों  से  देवराज  को  भी  जीवन  का  मर्म  समझ  में  आया   और  अपनी   कुटिलता पर  पछतावा  हुआ  l 

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