एक संत भ्रमण पर निकले हुए थे l उन्हें मार्ग में एक राजा मिला , जो पड़ौसी राज्य पर हमला करने के लिए निकला था l संत को देखकर उसने प्रणाम किया और बोला ---- " महाराज ! मैं चक्रवर्ती सम्राट हूँ l मेरे पास अपार धन - दौलत है और आज मैं उसे और बढ़ाने के लिए दूसरे राज्य पर आक्रमण करने निकला हूँ l आप मुझे आशीर्वाद दें l " संत धीरे से हँसे और उसके हाथ पर एक रूपये का सिक्का रख दिया l राजा को आश्चर्य हुआ l वह बोला ---- " महाराज ! आपने शायद सुना नहीं कि मैं बड़ा धनवान हूँ , मुझे इस एक रूपये की आवश्यकता नहीं l " संत बोले ---- " बेटा ! यही सुनकर मैंने ये रुपया तुझे दिया l मुझे ये मुद्रा पड़ी मिली थी और मैंने सोचा था कि इसे सबसे दरिद्र व्यक्ति को दूंगा l आज तुझसे मिलकर मुझे लगा कि सबसे दरिद्र यदि कोई है , तो वो तू ही है , जो अपार धन - संपदा होते हुए भी दूसरों का घर लूटने चला है l ' संत की बात सुनते ही राजा का सिर शरम से झुक गया और उसने जीवन की राह बदलने का संकल्प किया l लालच और महत्वाकांक्षा पर नियंत्रण जरुरी है l
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