5 May 2024

WISDOM ----

   एक  बार  एक  जिज्ञासु  आदि  शंकराचार्य  से  मिलने  पहुंचा  l  उसने  शंकराचार्य जी  से  प्रश्न  किया  --- " दरिद्र  कौन  है  ? " आचार्य  शंकर  ने  उत्तर  दिया --- " जिसकी  तृष्णा  का  कोई  पार  नहीं  है  , वही  सबसे  बड़ा  दरिद्र  है  l "    उस  जिज्ञासु  ने  पुन: प्रश्न  किया  ---- "धनी  कौन  है  ? "  शंकराचार्य  बोले  ---- " जो  संतोषी  है  , वही  धनि  है  l संतोष  से  बड़ा  धन  दूसरा  नहीं  है  l "    जिज्ञासु  ने  पुन: एक  प्रश्न  किया  ---- " वह  कौन  है  ,  जो  जीवित  होते  हुए  भी  मृतक  के  समान  है  ? "  उन्होंने  उत्तर  दिया  --- " वह  व्यक्ति  जो  उद्यमहीन  है   और  निराश  है  ,  उसका  जीवन  एक  जीवित  मृतक  के  समान  है  l  "  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- 'आदि  शंकराचार्य  के  ये  वचन  मनुष्य  के  आंतरिक  उत्कर्ष  के  लिए  बहुत   मूल्यवान  हैं  l  मनुष्य  अनंत  तृष्णाओं  को  पार  करने  के  प्रयत्न  में   दरिद्रता  को  प्राप्त  करता  है   और  संतोष  धन  को  पाते  ही   ऐसे  खजाने  का   स्वामी  हो  जाता  है  ,  जो  कभी  चुक  नहीं  सकता  l '  

WISDOM --------

   बंधुवर  पुष्प  !  लो  सबेरा  हुआ  , माली  इधर  ही  आ  रहा  है  ,  अपनी  सज्जनता , सौम्यता  और  उपकार  की  सजा  भुगतने  के  लिए  तैयार  हो  जाओ  l  यदि  मेरी  सीख  मानते   और  कठोरता  व  कुटिलता  का   का  आश्रय  ग्रहण  किए  रहते  , तो  आज  यह  नौबत  नहीं  आती  l   फूल  कुछ  बोला  नहीं  , बस !  मुस्कराता  रहा   l  माली  आया  , उसने  फूल   तोड़ा  और  डलिया  में  रखा  l  काँटा  दर्प  से  हँसा  , माली  की  वृद्ध  उँगलियों  में  चुभा   और  अहंकार  में  ऐंठ  गया  l  माली  उसे  भला -बुरा  कहता  हुआ  वापस  लौट  गया  l  समय  बीता  l  एक  दिन  देव मंदिर   में  चढ़ाए  उस  फूल  की  सूखी  काया  को   उठाकर  कोई   उसी  वृक्ष  की  जड़ों  के  पास  डाल  गया  l  काँटे  ने  म्लान  मुख   फूल  को  देखा  ,  तो  हँसा  और  बोला  --- " कहो  तात  !  अब  तो  समझ  गए   कि  परोपकारी  होना   अपनी  ही  दुर्गति  कराना  है  l "   फूल  की  आत्मा  बोली ---- " बन्धु ,   यह  तुम्हारा  अपना  विश्वास  है  l  शरीरों  में  चुभकर   दूसरों  की  आत्मा  को  कष्ट  पहुँचाने   के  पाप  के  अतिरिक्त   तुम  अपयश  के  भी  भागी  बने  l  अंत  तो  सभी  का  सुनिश्चित  है  ,  किन्तु  अपने  प्राणों  को   देवत्व  में  परिणत  करने   और  संसार  को  प्रसन्नता   प्रदान  करने  का   जो  श्रेय  मुझे  मिला  ,  तुम  उससे  सदैव  के  लिए  वंचित  रह  गए  l  मैं  हर  द्रष्टि  से  फायदे  में  हूँ  और  तुम  घाटे  में  l "