' श्रद्धा सरल ह्रदय की ऐसी प्रीति युक्त भावना है जो श्रेष्ठ पथ की सिद्धि कराती है । '
शबरी के घर भगवान गये और उससे मांग -मांगकर जूठे बेर खाये । यह प्रसंग उन दिनों संतजनों में सर्वत्र चर्चा का विषय बना हुआ था । अशिक्षित नारी , साधना -विधान से से अपरिचित रहने पर भी उसे इतना श्रेय क्यों मिला ? हम लोग उस श्रेय -सम्मान से वंचित क्यों रहे ?
मातंग ऋषि ने चर्चा रत भक्त जनों से कहा --" हम लोग संयम और पूजन मात्र में अपनी सद्गति के लिये किये प्रयासों को भक्ति मानते रहे हैं , जबकि भगवान की द्रष्टि में सेवा - साधना ही महत्वपूर्ण है । शबरी ही है जो रात -रात भर जागकर आश्रम से लेकर सरोवर तक कंटीला रास्ता साफ करती रही और सज्जनों का पथ -प्रशस्त करने के लिये अपना अविज्ञात , निरहंकारी , भावभरा योगदान प्रस्तुत करती रही । "
भक्त जनों का समाधान हो गया ।
शबरी के घर भगवान गये और उससे मांग -मांगकर जूठे बेर खाये । यह प्रसंग उन दिनों संतजनों में सर्वत्र चर्चा का विषय बना हुआ था । अशिक्षित नारी , साधना -विधान से से अपरिचित रहने पर भी उसे इतना श्रेय क्यों मिला ? हम लोग उस श्रेय -सम्मान से वंचित क्यों रहे ?
मातंग ऋषि ने चर्चा रत भक्त जनों से कहा --" हम लोग संयम और पूजन मात्र में अपनी सद्गति के लिये किये प्रयासों को भक्ति मानते रहे हैं , जबकि भगवान की द्रष्टि में सेवा - साधना ही महत्वपूर्ण है । शबरी ही है जो रात -रात भर जागकर आश्रम से लेकर सरोवर तक कंटीला रास्ता साफ करती रही और सज्जनों का पथ -प्रशस्त करने के लिये अपना अविज्ञात , निरहंकारी , भावभरा योगदान प्रस्तुत करती रही । "
भक्त जनों का समाधान हो गया ।
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