एक बार एक शिष्य द्वारा गुरुदेव से पूछे जाने पर कि मनुष्य को पुरुषार्थ क्यों करना पड़ता है ? भगवान अपने अनुदान देकर उसे पीड़ा-कष्ट से बचाता क्यों नहीं है ?
संत बोले---" वत्स ! यह संसार विधि-विधानों से चलता है | याचक-भिखारी तो कई हैं, पर यदि विधाता ने कुपात्रों को व्यर्थ वितरण आरम्भ कर दिया तो कर्म की, स्वावलंबन की, आत्मसुधार की कोई आवश्यकता ही शेष न रह जायेगी | "
' अपना व्यक्तित्व ऊँचा उठाने के लिये पुरुषार्थ करना होता है | अपने चिंतन की निकृष्टता का निवारण और सद्विचारों की स्थापना सर्वश्रेष्ठ पुरुषार्थ है जो किसी भी सांसारिक पराक्रम से बढ़कर है | '
संत बोले---" वत्स ! यह संसार विधि-विधानों से चलता है | याचक-भिखारी तो कई हैं, पर यदि विधाता ने कुपात्रों को व्यर्थ वितरण आरम्भ कर दिया तो कर्म की, स्वावलंबन की, आत्मसुधार की कोई आवश्यकता ही शेष न रह जायेगी | "
' अपना व्यक्तित्व ऊँचा उठाने के लिये पुरुषार्थ करना होता है | अपने चिंतन की निकृष्टता का निवारण और सद्विचारों की स्थापना सर्वश्रेष्ठ पुरुषार्थ है जो किसी भी सांसारिक पराक्रम से बढ़कर है | '
from where you got such inspiring stories...nice collection.....its a story blog i say.....good work
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