आनंद ने बुद्ध से प्रश्न किया--" भगवान ! आप विश्व भर में धर्म प्रचार के लिये भिक्षुओं को भेज रहें हैं, पर इनके पास कोई धन नहीं है तो ये मार्ग व्यय को कैसे पूर्ण कर पायेंगे । "
बुद्ध बोले--" आनंद ! ये तुमने कैसे सोचा कि इनके पास कुछ नहीं है । इनके पास संयमित जीवन की संपदा है । संयम और संघर्ष एक दूसरे के पर्यायवाची हैं, जो संघर्ष कर सकता है, वह अपने पुरुषार्थ से जनसहयोग स्वत: ही प्राप्त कर लेता है । वस्तुत: संपदा तो आंतरिक होती है, बाह्य जीवन में केवल उसके परिणाम दिखाई पड़ते हैं । "
इस चिंतन के साथ भगवान बुद्ध के भेजे गये विश्वदूतों ने अपने जीवन जीने के माध्यम से ही उनके सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार संपूर्ण विश्व में कर दिया ।
बुद्ध बोले--" आनंद ! ये तुमने कैसे सोचा कि इनके पास कुछ नहीं है । इनके पास संयमित जीवन की संपदा है । संयम और संघर्ष एक दूसरे के पर्यायवाची हैं, जो संघर्ष कर सकता है, वह अपने पुरुषार्थ से जनसहयोग स्वत: ही प्राप्त कर लेता है । वस्तुत: संपदा तो आंतरिक होती है, बाह्य जीवन में केवल उसके परिणाम दिखाई पड़ते हैं । "
इस चिंतन के साथ भगवान बुद्ध के भेजे गये विश्वदूतों ने अपने जीवन जीने के माध्यम से ही उनके सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार संपूर्ण विश्व में कर दिया ।
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