सद्विचार और सत्कर्मों का जोड़ होना बहुत आवश्यक है l विचारों की शक्ति जब तक कर्म में अभिव्यक्त नहीं होती उसका पूरा लाभ नहीं होता l महाकवि दांते ने विचार और कर्म दोनों में ही अपनी गति प्रमाणित की l इसी कारण वे अपने अमर महाकाव्य 'डिवाइन कॉमेडी ' की रचना में सफल हुए l
दांते का जन्म अभिजात्य वर्ग में हुआ था किन्तु वे उन सब दोषों से मुक्त थे जो सम्पन्नता के मिथ्याभिमान के कारण पैदा हो जाते हैं l युवावस्था में ही उन्होंने अपनी उस कवित्व शक्ति का
जिसे वे ईश्वरीय वरदान मानते थे , लोक हित में सदुपयोग करना आरम्भ कर दिया l जिस प्रकार भारत में संत तुलसीदास ने रामचरितमानस को संस्कृत में न लिखकर जनता की भाषा ' अवधी ' में लिखा , उसी प्रकार महाकवि दांते ने इस महाकाव्य की रचना इटली के पंडितों की भाषा लैटिन में न कर के सामान्य जन की भाषा में की '
दांते का जन्म अभिजात्य वर्ग में हुआ था किन्तु वे उन सब दोषों से मुक्त थे जो सम्पन्नता के मिथ्याभिमान के कारण पैदा हो जाते हैं l युवावस्था में ही उन्होंने अपनी उस कवित्व शक्ति का
जिसे वे ईश्वरीय वरदान मानते थे , लोक हित में सदुपयोग करना आरम्भ कर दिया l जिस प्रकार भारत में संत तुलसीदास ने रामचरितमानस को संस्कृत में न लिखकर जनता की भाषा ' अवधी ' में लिखा , उसी प्रकार महाकवि दांते ने इस महाकाव्य की रचना इटली के पंडितों की भाषा लैटिन में न कर के सामान्य जन की भाषा में की '
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