' आचार्य श्री ने लिखा है --- ' यह संसार जिसमें हम रह रहे हैं कष्ट और कठिनाइयों का घर कहा गया है l यहाँ प्रतिकूलतायें और विषमताएं तो आती ही रहती हैं l केवल निराश बनकर पड़े रहने से आप प्रगति तो नहीं के पाएंगे , साथ ही जिस स्थिति में पड़े -पड़े कष्ट भोग रहे हैं , वह भी दूर न होगी l '
उन्होंने लिखा है --- प्रतिकूलताओं से टक्कर लेते हुए आगे बढ़ना ही जीवन है l इसलिए निराश कभी नहीं होना चाहिए l आशा और उत्साह की वृत्ति मानव शक्तियों के लिए संजीवनी के समान है l आशा की मशाल हाथ में लेकर आगे बढ़िए l आप देखेंगे कि आपका आत्मविश्वास , आपकी क्षमताएं जो निराशा की दशा में आपसे दूर हो गईं थीं , दौड़कर फिर चली आएँगी l आपके जीवन में वांछित परिवर्तन तभी आ सकेगा , जब आप निराशा से पल्लू छुड़ाकर आशावादी बनेंगे l '
उन्होंने लिखा है --- प्रतिकूलताओं से टक्कर लेते हुए आगे बढ़ना ही जीवन है l इसलिए निराश कभी नहीं होना चाहिए l आशा और उत्साह की वृत्ति मानव शक्तियों के लिए संजीवनी के समान है l आशा की मशाल हाथ में लेकर आगे बढ़िए l आप देखेंगे कि आपका आत्मविश्वास , आपकी क्षमताएं जो निराशा की दशा में आपसे दूर हो गईं थीं , दौड़कर फिर चली आएँगी l आपके जीवन में वांछित परिवर्तन तभी आ सकेगा , जब आप निराशा से पल्लू छुड़ाकर आशावादी बनेंगे l '
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