कहावत है ---- इतने मीठे मत बनो कि लोग तुम्हे चट कर जाएँ , इतने कडुवे भी मत बनो कि लोग तुम्हे थूकते फिरे l " यही बात क्रोध पर भी लागू होती है l जिस क्रोध की ज्वाला से हम स्वयं और दूसरे लोग दग्ध हों , हमारा व दूसरों का अहित हो वह त्याज्य है l
लेकिन वह स्वस्थ क्रोध जिसे ' मन्यु ' कहते हैं , वह दवा बनकर हमारी सामजिक बुराइयों की चिकित्सा करे , दूषित तत्वों का निवारण करे , बिगड़े हुओं को सुधरने के लिए मजबूर करे , भूल के लिए दंड दे , ऐसा स्वस्थ क्रोध आवश्यक भी है और अनिवार्य भी l जिस समाज में इसका अभाव हो जाता है वह कायर , नपुंसक व दीन - हीन बन जाता है l उसकी नैतिक क्षमता और चरित्र भी गिर जाता है l
ऋषियों की हड्डियों के ढेर को देखकर राम का आक्रोश , समुद्र के अहंकार पर लक्ष्मण का कोप , क्षत्रियों के अत्याचारों पर परशुराम का क्रोध , आततायी कंस और कौरवों के प्रति श्रीकृष्ण का विरोध , इसी मन्यु शक्ति का परिचायक है l अन्याय और अत्याचार से निपटने के लिए , दीन - हीन गरीब असहायों के अधिकारों की रक्षा के लिए इसी ' मन्यु शक्ति ' की आवश्यकता है l
लेकिन वह स्वस्थ क्रोध जिसे ' मन्यु ' कहते हैं , वह दवा बनकर हमारी सामजिक बुराइयों की चिकित्सा करे , दूषित तत्वों का निवारण करे , बिगड़े हुओं को सुधरने के लिए मजबूर करे , भूल के लिए दंड दे , ऐसा स्वस्थ क्रोध आवश्यक भी है और अनिवार्य भी l जिस समाज में इसका अभाव हो जाता है वह कायर , नपुंसक व दीन - हीन बन जाता है l उसकी नैतिक क्षमता और चरित्र भी गिर जाता है l
ऋषियों की हड्डियों के ढेर को देखकर राम का आक्रोश , समुद्र के अहंकार पर लक्ष्मण का कोप , क्षत्रियों के अत्याचारों पर परशुराम का क्रोध , आततायी कंस और कौरवों के प्रति श्रीकृष्ण का विरोध , इसी मन्यु शक्ति का परिचायक है l अन्याय और अत्याचार से निपटने के लिए , दीन - हीन गरीब असहायों के अधिकारों की रक्षा के लिए इसी ' मन्यु शक्ति ' की आवश्यकता है l
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