यह बात सही है कि मनुष्य के जीवन में स्वार्थ का भी एक स्थान है किन्तु उस स्वार्थ को निकृष्टता ही कहा जायेगा जिसका संपादन अथवा जिसकी पूर्ति देश व समाज को क्षति पहुंचाती है l पं श्रीराम शर्मा आचार्य ने वाड्मय ' मरकर भी जो अमर हो गए ' में लिखा है ---- ' दुनिया में हेय और हीन बनकर ही तो काम नहीं चलता l यह तो मनुष्य की अपनी कमजोरी और सोचने का ढंग है कि अन्यायियों के तलवे चाटने से ही काम चलता है l वैसे इतिहास तथा उदाहरण साक्षी है कि संसार में एक से एक बढ़कर स्वाभिमानी तथा सिद्धांत के धनी व्यक्ति हुए हैं जिन्होंने जीवन दे दिया पर स्वाभिमान नहीं दिया l ' उनका कहना है कि स्वार्थ और कायरता के कारण लोगों की आत्माएं तेजहीन हो गई हैं l
विवेक पर मोह का आवरण आ गया है l निकृष्टता का अनुकरण करना श्रेयस्कर नहीं होता l यदि अनुकरण ही करना हो तो संसार में श्रेष्ठताओं और श्रेष्ठ व्यक्तियों की कमी नहीं है l '
विवेक पर मोह का आवरण आ गया है l निकृष्टता का अनुकरण करना श्रेयस्कर नहीं होता l यदि अनुकरण ही करना हो तो संसार में श्रेष्ठताओं और श्रेष्ठ व्यक्तियों की कमी नहीं है l '
No comments:
Post a Comment