29 April 2020

WISDOM ------

  प्राचीन  काल  में   जो  राजा  बहुत  वीर , शक्तिशाली  और  प्रजापालक  होते  थे   ,  वे  संसार  के  विभिन्न  राजाओं  को  अपने  आधीन  कर  ' चक्रवर्ती  सम्राट '  कहलाते  थे  l   विभिन्न  देशों  व  क्षेत्रों  में    वहां  के  कार्य  संचालन   के  लिए  राजा  तो  होते  थे    लेकिन  वे ' चक्रवर्ती   सम्राट '  के  ध्वज  तले   ही  काम  करते  थे  ,  उन्ही  के  आदेशानुसार  ,  उन्ही  की  नीतियों  के  अनुसार  राज - काज  होता  था  l   ये  सम्राट  प्रजापालक  थे  ,  इनका  उद्देश्य  संसार  में  सुख - शांति  स्थापित  करना   और  कला , साहित्य  आदि  हर  क्षेत्र  में  विकास  करना  था  l  ऐसे  प्रजापालक  सम्राटों  का  युग  इतिहास   में  ' स्वर्ण  युग ' कहलाता  है   l
                धीरे - धीरे  वक्त  बदला  ,   धन - सम्पदा   को  बहुत  अधिक  महत्व   दिया  जाने  लगा   l   फिर    शासन  व्यवस्था  चाहे  जो  हो  ,  जिसके  पास  भी  शक्ति  हो  ,  जनता  का  शोषण  कर  धन  संग्रह  करना   जीवन  का  प्रमुख  लक्ष्य  हो  गया  l ' चक्रवर्ती  सम्राट'  के  भी    मायने  बदल  गए  l   अब  वीरता  और  प्रशासनिक  कुशलता  और  प्रजापालक    की  जरुरत  नहीं  रह  गई    l   जिसके  पास  धन  है ,  पूंजी  है  वह  व्यक्ति  हो  या  संगठन    संसार  को  अपने   हिसाब  से  चला  सकता  है   l  वही  चक्रवर्ती  सम्राट  है  l   तुलसीदास जी  ने  कहा  भी  है  ----'  समरथ    को  नहि   दोष    गुसाईं  l  '

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