वर्तमान युग की दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति का चित्रण करते हुए पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है ----- " भावनाओं को दिशा देने वाली कुंजी उन हाथों में चली गई है , जिनमे नहीं जानी चाहिए थी l बारूद की पेटी बालकों को थमा दी जाये , तलवार बन्दर को मिल जाये , सशक्त औषधियों का उपयोग कोई अनाड़ी करने लगे , खजाने की व्यवस्था कोई पागल संभाले तो उसका परिणाम अहितकर ही होगा l भावनाओं को प्रभावित करना एक ऐसा महत्वपूर्ण कार्य है जिस पर संसार का भाग्य और भविष्य जुड़ा हुआ है इसलिए इसको प्रयुक्त करने का अधिकार सत्पात्रता की आग में तपे हुए अधिकारियों और मनीषियों को मिलना चाहिए जो कला को सद्विचारों - सद्भावों का माध्यम बना सकें l "
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