आचार्य अपने विद्दार्थियों को समझा रहे थे ---- " मानवीय पतन का एक बड़ा कारण उसका उन्माद है l समुद्र मंथन में प्रथम दो रत्न निकले --- हलाहल विष और मद्द्य l हलाहल को तो भोलेबाबा भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण कर लिया l परन्तु मद्द्य ऐसा था कि उसका स्वाद लगने पर छूटने का नाम नहीं लेता था l प्रजापति ने देव और असुर , दोनों को समझाया , परन्तु उनकी सीख को दरकिनार करते हुए असुरों ने मद्द्य ग्रहण कर लिया l नशा उनके दिमाग में चढ़ गया , उन्होंने अपनी सामर्थ्य को लोगों को उत्पीड़ित करने में लगा दिया और यही उनके पतन का कारण बना l "
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