आसुरी शक्तियों को पराजित करने के लिए दैवी शक्तियों का संगठित होना अनिवार्य है l असुरता का कार्य करने का तरीका जो त्रेतायुग में था , वही द्वापर युग में था और वही हम आज कलियुग में देखते हैं l रावण की ' सोने की लंका ' थी , वह बहुत विद्वान् था , महापंडित था लेकिन अपनी आसुरी प्रवृति के कारण राक्षसराज रावण कहलाया l शिवजी को प्रसन्न करने के लिए उसने तांडव स्रोत आदि की रचना अवश्य की , देवी की उपासना की l लेकिन एक कल्याणकारी राजा की तरह उसने कला , साहित्य , ज्ञान और श्रेष्ठ प्रवृतियों के प्रचार - प्रसार का कोई कार्य नहीं किया l उसने जो कुछ भी किया अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए , अपने अहंकार को पोषित करने के लिए l उसने दूर - के क्षेत्रों में अपने राक्षसों को भेजा , जो उसके नाम की जय -जयकार करते और गरीबों , कमजोरों और ऋषियों को सताते थे , उनका खून चूसते थे l
भगवन श्रीराम ने समाज के कमजोर वर्ग निषादराज आदि को सम्मान दिया वानरों , रीछों आदि को साथ लेकर सेना बनाई l भगवान श्रीराम वनवासी थे , उनके पास कोई वैभव नहीं था , कोई सुख - सुविधा नहीं थी लेकिन सत्य , धर्म और न्याय था l रावण ने तरह - तरह के लालच देकर अंगद और सुग्रीव को अपनी ओर करना चाहा लेकिन वे भी जानते थे कि उनका जीवन और उनका भविष्य कहाँ सुरक्षित है l
रामचरितमानस के विभिन्न प्रसंग हमारी चेतना को जाग्रत करने के लिए हैं l हम संसार में असुरता और देवत्व की पहचान करना सीखें और जो श्रेष्ठ हो उसका चयन करें l
भगवान ने अनीति और अत्याचार के प्रतीक रावण का अंत किया l गीता में भी भगवान ने यही कहा है कि यदि अनीति , अत्याचार को हम नहीं मिटायेंगे तो वे हमें मिटा डालेंगे इसलिए अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना जरुरी है l
भगवन श्रीराम ने समाज के कमजोर वर्ग निषादराज आदि को सम्मान दिया वानरों , रीछों आदि को साथ लेकर सेना बनाई l भगवान श्रीराम वनवासी थे , उनके पास कोई वैभव नहीं था , कोई सुख - सुविधा नहीं थी लेकिन सत्य , धर्म और न्याय था l रावण ने तरह - तरह के लालच देकर अंगद और सुग्रीव को अपनी ओर करना चाहा लेकिन वे भी जानते थे कि उनका जीवन और उनका भविष्य कहाँ सुरक्षित है l
रामचरितमानस के विभिन्न प्रसंग हमारी चेतना को जाग्रत करने के लिए हैं l हम संसार में असुरता और देवत्व की पहचान करना सीखें और जो श्रेष्ठ हो उसका चयन करें l
भगवान ने अनीति और अत्याचार के प्रतीक रावण का अंत किया l गीता में भी भगवान ने यही कहा है कि यदि अनीति , अत्याचार को हम नहीं मिटायेंगे तो वे हमें मिटा डालेंगे इसलिए अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना जरुरी है l
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