4 May 2020

WISDOM -----

  आसुरी  शक्तियों  को  पराजित  करने  के  लिए  दैवी  शक्तियों  का  संगठित  होना  अनिवार्य  है  l  असुरता  का  कार्य  करने  का  तरीका  जो  त्रेतायुग  में  था , वही  द्वापर युग  में  था   और  वही  हम  आज  कलियुग  में  देखते  हैं  l     रावण  की  ' सोने  की  लंका ' थी  ,  वह  बहुत  विद्वान्  था , महापंडित  था   लेकिन  अपनी  आसुरी  प्रवृति  के  कारण   राक्षसराज  रावण  कहलाया   l  शिवजी  को  प्रसन्न  करने  के  लिए  उसने  तांडव स्रोत  आदि  की  रचना  अवश्य  की  ,  देवी  की  उपासना  की   l   लेकिन  एक  कल्याणकारी  राजा  की  तरह   उसने  कला , साहित्य ,  ज्ञान  और  श्रेष्ठ  प्रवृतियों  के  प्रचार - प्रसार  का  कोई  कार्य  नहीं  किया  l  उसने  जो  कुछ  भी  किया  अपने  स्वार्थ  की  पूर्ति  के  लिए ,  अपने  अहंकार  को   पोषित  करने  के  लिए  l   उसने  दूर -   के  क्षेत्रों  में  अपने  राक्षसों  को  भेजा  ,  जो  उसके  नाम  की   जय -जयकार  करते   और  गरीबों , कमजोरों  और  ऋषियों  को  सताते  थे  ,  उनका  खून  चूसते  थे  l
  भगवन  श्रीराम  ने    समाज  के  कमजोर  वर्ग   निषादराज  आदि  को  सम्मान  दिया   वानरों , रीछों  आदि  को  साथ  लेकर  सेना  बनाई  l   भगवान   श्रीराम  वनवासी  थे  ,  उनके  पास  कोई  वैभव  नहीं  था  ,  कोई  सुख - सुविधा  नहीं  थी   लेकिन  सत्य , धर्म  और  न्याय  था   l   रावण  ने  तरह - तरह  के  लालच  देकर   अंगद  और  सुग्रीव  को   अपनी  ओर   करना  चाहा   लेकिन  वे  भी  जानते  थे   कि   उनका  जीवन  और  उनका  भविष्य   कहाँ  सुरक्षित  है  l
रामचरितमानस  के  विभिन्न  प्रसंग  हमारी  चेतना  को  जाग्रत  करने  के  लिए  हैं   l  हम  संसार  में  असुरता  और  देवत्व  की  पहचान  करना  सीखें    और  जो  श्रेष्ठ  हो  उसका  चयन  करें  l
भगवान   ने  अनीति  और  अत्याचार  के  प्रतीक  रावण  का  अंत  किया  l   गीता  में  भी  भगवान   ने  यही  कहा  है   कि   यदि  अनीति , अत्याचार  को  हम  नहीं  मिटायेंगे  तो  वे  हमें  मिटा  डालेंगे   इसलिए  अधर्म  का  नाश  और  धर्म  की  स्थापना  जरुरी  है  l 

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