साम्राजयवाद एक प्रकार का अभिशाप है , जो लाखों निर्दोष लोगों का संहार कर डालता है और लाखों का ही घर - बार नष्ट कर उन्हें पथ का भिखारी बना देता है l साम्राज्यवादियों के लिए अकारण ही दूसरे राजाओं पर आक्रमण करना , उन पर चढ़ बैठना और उनका राज्य छीन लेना कोई नई बात नहीं है l सिकन्दर , चंगेज खां , नादिरशाह जैसे आक्रमणकारियों के काले - कारनामों से इतिहास भरा है l धीरे - धीरे साम्राज्यवादियों ने दूसरे देशों पर अपना कब्ज़ा जमाने के तरीकों में परिवर्तन किया , उन्होंने व्यापार के माध्यम से दूसरे देशों में प्रवेश किया , वहां की जनता को अपनी वस्तुओं , अपनी भाषा , अपने रहन - सहन के तरीकों की आदत डाल दी और इस तरह अनेक देशों को अपना गुलाम बना लिया और जी भरकर लूटा l
कमजोर पर अत्याचार करना, लूटमार करना भी एक प्रकार का नशा है , इसकी आदत छूटती नहीं बल्कि वैज्ञानिक प्रगति के साथ अत्याचार , अन्याय के तरीके भी बहुत घातक हो जाते हैं , जो बाहर से कल्याणकारी दीखते हैं लेकिन जख्म बहुत गहरा करते हैं l यदि जनता जागरूक नहीं है , उसकी चेतना सुप्त है , चुपचाप सब सहन करती है तब दोष किसका है ?
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी वाङ्मय ' मरकर भी अमर हो गए जो ' में लिखते हैं --- ' धन और राज्य की लालसा मनुष्य को न्याय - अन्याय के प्रति अन्धा बना देती है l लोभ उसकी आँखों पर ऐसी पट्टी बाँध देता है कि उसे सिवाय अपनी लालसा पूर्ति के और कोई बात दिखाई ही नहीं देती l ' आचार्य श्री आगे लिखते हैं ---- " यों तो डाकू दल भी अपनी संगठित शक्ति और अस्त्र - शस्त्रों के बल पर लूटमार करते हैं और अपने को बड़ा बहादुर समझते हैं पर कभी किसी डाकू का अन्त अच्छा हुआ हो , यह आज तक नहीं सुना गया l '
कमजोर पर अत्याचार करना, लूटमार करना भी एक प्रकार का नशा है , इसकी आदत छूटती नहीं बल्कि वैज्ञानिक प्रगति के साथ अत्याचार , अन्याय के तरीके भी बहुत घातक हो जाते हैं , जो बाहर से कल्याणकारी दीखते हैं लेकिन जख्म बहुत गहरा करते हैं l यदि जनता जागरूक नहीं है , उसकी चेतना सुप्त है , चुपचाप सब सहन करती है तब दोष किसका है ?
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी वाङ्मय ' मरकर भी अमर हो गए जो ' में लिखते हैं --- ' धन और राज्य की लालसा मनुष्य को न्याय - अन्याय के प्रति अन्धा बना देती है l लोभ उसकी आँखों पर ऐसी पट्टी बाँध देता है कि उसे सिवाय अपनी लालसा पूर्ति के और कोई बात दिखाई ही नहीं देती l ' आचार्य श्री आगे लिखते हैं ---- " यों तो डाकू दल भी अपनी संगठित शक्ति और अस्त्र - शस्त्रों के बल पर लूटमार करते हैं और अपने को बड़ा बहादुर समझते हैं पर कभी किसी डाकू का अन्त अच्छा हुआ हो , यह आज तक नहीं सुना गया l '
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