ईश्वर के प्रति यदि हमारी भक्ति सच्ची है , कोई छल - कपट नहीं है तो भक्ति से भावनाएं परिष्कृत होती हैं और मन को शांति मिलती है l भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए उनके पिता हिरण्यकशिपु और शुक्राचार्य ने कोई कसर न छोड़ी , हर संभव प्रयास किये , लेकिन प्रह्लाद निश्चिन्त और निर्भय थे l उनकी माता कयाधु उनके लिए चिंतित और भयभीत रहती थीं l प्रह्लाद जब - तब अपनी माता को समझाया करते ---- " माता ! चिंता की कोई बात नहीं है l भगवान नारायण हैं न l रही बात विपदाओं और विपत्तियों की , तो ये केवल भक्त की परीक्षा नहीं लेतीं , इन क्षणों में परीक्षा भगवान की भी होती है l भक्त की परीक्षा इस बात की होती है कि भक्त की निष्ठा , श्रद्धा , आस्था कितनी सच्ची और अडिग है l भगवान की परीक्षा इस बात की होती है कि वे कितने भक्तवत्सल और कितने समर्थ हैं l ' हम सच्चे भक्त बने , भगवान कभी भी अपने भक्त को अकेला नहीं छोड़ते , हर पल उसका ध्यान रखते है इसलिए भक्त सर्वथा शांत और निश्चिन्त रहता है l
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