7 May 2024

WISDOM -----

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- "जो  तृष्णा  और  सुख  की  लालसा  से   अपने  आपको  जितना  भरता  जाता  है  ,  वह  उतना  ही   अपने  अहंकार  को  तुष्ट  और  पुष्ट  करता  है  l  संसार  में , दुनियादारी  में   व्यक्ति  स्वामित्व  की  चाहत  रखता  है  ,  लेकिन  यह  चाहत  स्वयं  का  स्वामी  बनने  की  नहीं  होती   l  यह  चाहत  होती  है   धन , साधन , भवन -संपत्ति  का  स्वामी  बनने  की  l  संसार  में  शक्ति  के  मायने   अहंता  के  पोषण  के  सिवाय  और  कुछ  नहीं  है   और  अहंता  का  पोषण   अशांति  से  ज्यादा  और  कुछ  भी  नहीं  दे  सकता  l  धन , दुकान , भूमि , भवन , संपत्ति   का  मालिक  बनकर  भी   मनुष्य  केवल  गुलाम  बनता  है   l  इस  सत्य  को  समझाने  वाली   सूफी  संत  फरीद  के  जीवन  की  एक  घटना  है ----  बाबा  फरीद  अपने  शिष्यों  के  साथ   एक  गाँव  से  गुजर  रहे  थे  l  वहीँ  रास्ते  में  एक  आदमी  अपनी  गाय  को   रस्सी  से  बांधे  लिए  जा  रहा  था   l  फरीद  ने  उस  आदमी  से  थोड़ी  देर  रुकने  की  प्रार्थना  की  l  उनकी  प्रार्थना  पर  वह  रुक  गया  l  अब  बाबा  फरीद  ने  अपने  शिष्यों  से  पूछा  ---- "  इन  दोनों  में  मालिक  कौन  है  ----गाय  या  आदमी  ? "  शिष्यों  ने  कहा ---- "  यह  भी  कोई  बात  हुई  , जाहिर  है   कि  आदमी  गाय  का  मालिक  है   l "  फरीद  ने  फिर  कहा  --- "  यदि  गाय  के  गले  की  रस्सी  काट  दी  जाए  तो  कौन  किसके   पीछे  दौड़ेगा  ---- गाय  आदमी  के  पीछे  या   फिर  आदमी  गाय  के  पीछे  l "  शिष्यों  ने  कहा --- " जाहिर  है   आदमी  गाय  के  पीछे  भागेगा   l "  तो  फिर  फरीद  ने  शिष्यों  से  कहा ----- "  तो  फिर  मालिक  कौन  हुआ  ? " फरीद  ने  शिष्यों  से  कहा ---- ' तो  फिर  मालिक  कौन  हुआ ? "  फरीद  ने  अपने  शिष्यों  से  कहा ----" यह  जो  रस्सी  तुम्हे  दिखाई  पड़ती  है   गाय  के  गले  में  ,  यह  दरअसल  आदमी  के  गले  में  है  l  हर  संपत्ति  हमारे  गले  का  फंदा  बन   जाती  है  l "  आज  मनुष्य   सुख  साधनों  के  पीछे  भाग  रहा  है  ,  इस  अंधी  दौड़  में  वह  स्वयं  को  ही  भूल  गया  है  l