लोकमान्य तिलक कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने लखनऊ आये | वहां उनका कार्यक्रम इतना व्यस्त था कि अपने निजी कार्यों के लिये भी समय निकलना बहुत मुश्किल था । बड़ी कठिनाई से वे भोजन का अवकाश पा सके । भोजन के समय परोसने वाले स्वयंसेवक ने कहा--" महाराज ! आज तो आपको बिना पूजा-पाठ के ही भोजन करना पड़ा । " लोकमान्य गंभीर हो गये और बोले--" अभी तक हम जो कर रहे थे वह भी एक प्रकार की पूजा थी । मात्र कर्मकांडो की लकीर पीटना ही पूजा नहीं है । समाज सेवा भी एक प्रकार की पूजा है, आराधना है । "
जब ' मराठा ' और ' केसरी ' अखबार में लिखे लेखों के कारण उन्हें जेल भेजा गया तो वहां उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया, लेकिन उनका मनोबल जरा भी नहीं डिगा । अपनी स्मृति के आधार पर बिना संदर्भ ग्रंथों के उनने पेंसिल से ' गीता रहस्य ' भाष्य लिखा । अंग्रेजों ने उसे जब्त कर लिया । वे बोले--" मैं फिर लिख लूँगा । "
परमात्मा को अर्पित कर्म ने उन्हें अमर बना दिया, उन्हें अपना ग्रंथ वापस मिल गया ।
जब ' मराठा ' और ' केसरी ' अखबार में लिखे लेखों के कारण उन्हें जेल भेजा गया तो वहां उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया, लेकिन उनका मनोबल जरा भी नहीं डिगा । अपनी स्मृति के आधार पर बिना संदर्भ ग्रंथों के उनने पेंसिल से ' गीता रहस्य ' भाष्य लिखा । अंग्रेजों ने उसे जब्त कर लिया । वे बोले--" मैं फिर लिख लूँगा । "
परमात्मा को अर्पित कर्म ने उन्हें अमर बना दिया, उन्हें अपना ग्रंथ वापस मिल गया ।
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