ईसा ने खुलकर अपने सिद्धांतों का प्रचार करना आरंभ कर दिया था | उनके बहुत से शत्रु उन पर हमला करने की योजना बनाने लगे थे । एक शिष्य ने उनसे कहा-- " हे मेरे प्रभु ! तू संसार का कल्याण करना चाह रहा है और ये कुटिल जन तुझे ही कष्ट देने की योजना बना रहें हैं । मुझे अनुमति दे, मैं तेरी रक्षा हेतु सदा तेरे साथ अंगरक्षक के रूप में रहना चाहता हूँ । "
ईसा सरल भाव से बोले-- " देख मेरे बेटे ! तू मेरे साथ कहाँ-कहाँ भटकेगा । मैं तो उस प्रभु का पुत्र हूँ । वही इस विराट संसार में मुझे जगह देगा, मेरी देखभाल करेगा । मेरी शरीर रक्षा की अपेक्षा तू मेरे सिद्धांतों एवं विचारों का विस्तार कर । वही अमर रहने वाले हैं । यह तन नहीं । "
ईसा सरल भाव से बोले-- " देख मेरे बेटे ! तू मेरे साथ कहाँ-कहाँ भटकेगा । मैं तो उस प्रभु का पुत्र हूँ । वही इस विराट संसार में मुझे जगह देगा, मेरी देखभाल करेगा । मेरी शरीर रक्षा की अपेक्षा तू मेरे सिद्धांतों एवं विचारों का विस्तार कर । वही अमर रहने वाले हैं । यह तन नहीं । "
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