' मनुष्य जीवन इतना बहुमूल्य है कि उसकी तुलना में संसार की समस्त संपदा भी कम पड़ती है |
आँखे न हों तो संसार भर में मात्र अँधेरा ही अँधेरा रहेगा । कान सुनना बंद कर दे तो वार्तालाप सुनने का आनंद ही समाप्त है । शरीर रोगी हो तो किसी भी इंद्रिय से कोई भी आनंद लाभ प्राप्त करने का अवसर नहीं हो । मस्तिष्क पर उन्माद चढ़ दौड़े तो समझना चाहिये कि समूचे संसार की गतिविधियाँ उलटी दिशा में चल पड़ीं । दुर्बुद्धि घेरे हुए हो अनगढ़ आदतें स्वभाव में घुसी हुई हों तो पग-पग पर ऐसे आचरण बन पड़ेंगे कि निराशा, असफलता और खीज ही हाथ लगे ।
नदी में रीछ बहता जा रहा था । किनारे पर खड़े साधु ने समझा कि यह कम्बल बहता आ रहा है । निकालने के लिये वह तैरकर उस तक पहुँचा और पकड़ कर किनारे की तरफ खींचने लगा । रीछ जीवित था प्रवाह में बहता चला आया था । उसने साधु को जकड़ कर पकड़ लिया ताकि वह उस पर सवार होकर पार निकल सके । दोनों एक दूसरे के साथ गुत्थमगुत्था कर रहे थे
किनारे पर खड़े दूसरे साथी साधु ने पुकारा --" कम्बल हाथ नहीं आता तो उसे छोड़ दो और वापस लौट आओ । "
जवाब में उस फंसे हुए साधु ने कहा-- मैं तो कम्बल छोड़ना चाहता हूँ पर उसने तो मुझे ऐसा जकड़ लिया है कि छूटने की कोई तरकीब नहीं सूझती ।
व्यसनों को लोग पकड़ते हैं पर कुछ ही दिनों में वे उन्हें अपने शिकंजे में कस लेते हैं और छोड़ने पर भी छूटते नहीं ।
श्रेष्ठ और उत्कृष्ट चिंतन द्वारा शारीरिक-मानसिक बीमारियों से मुक्ति पायी जा सकती है ।
अड़ियल घोड़े की तरह मन को साधा और सुधार लिया जाये तो हर व्यक्ति सुखी बन सकता है ।
आँखे न हों तो संसार भर में मात्र अँधेरा ही अँधेरा रहेगा । कान सुनना बंद कर दे तो वार्तालाप सुनने का आनंद ही समाप्त है । शरीर रोगी हो तो किसी भी इंद्रिय से कोई भी आनंद लाभ प्राप्त करने का अवसर नहीं हो । मस्तिष्क पर उन्माद चढ़ दौड़े तो समझना चाहिये कि समूचे संसार की गतिविधियाँ उलटी दिशा में चल पड़ीं । दुर्बुद्धि घेरे हुए हो अनगढ़ आदतें स्वभाव में घुसी हुई हों तो पग-पग पर ऐसे आचरण बन पड़ेंगे कि निराशा, असफलता और खीज ही हाथ लगे ।
नदी में रीछ बहता जा रहा था । किनारे पर खड़े साधु ने समझा कि यह कम्बल बहता आ रहा है । निकालने के लिये वह तैरकर उस तक पहुँचा और पकड़ कर किनारे की तरफ खींचने लगा । रीछ जीवित था प्रवाह में बहता चला आया था । उसने साधु को जकड़ कर पकड़ लिया ताकि वह उस पर सवार होकर पार निकल सके । दोनों एक दूसरे के साथ गुत्थमगुत्था कर रहे थे
किनारे पर खड़े दूसरे साथी साधु ने पुकारा --" कम्बल हाथ नहीं आता तो उसे छोड़ दो और वापस लौट आओ । "
जवाब में उस फंसे हुए साधु ने कहा-- मैं तो कम्बल छोड़ना चाहता हूँ पर उसने तो मुझे ऐसा जकड़ लिया है कि छूटने की कोई तरकीब नहीं सूझती ।
व्यसनों को लोग पकड़ते हैं पर कुछ ही दिनों में वे उन्हें अपने शिकंजे में कस लेते हैं और छोड़ने पर भी छूटते नहीं ।
श्रेष्ठ और उत्कृष्ट चिंतन द्वारा शारीरिक-मानसिक बीमारियों से मुक्ति पायी जा सकती है ।
अड़ियल घोड़े की तरह मन को साधा और सुधार लिया जाये तो हर व्यक्ति सुखी बन सकता है ।
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